।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
पौष शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं.–२०७०, सोमवार
उद्देश्यकी दृढ़तासे लाभ



मनुष्यजन्मका उद्देश्य क्या हैहमारे जीवनका लक्ष्य क्या है‒इसको जानना बहुत आवश्यक है । जैसेकोई आदमी अपने घरसे तो निकल जायपर कहाँ जाना है‒इसका पता ही न हो तो क्या दशा होती है वह किसीसे पूछे कि मुझे मार्ग बताओ । कहाँका बतायें कहींका बता दो ! तो फिर कहीं चले जाओबतानेकी जरूरत क्या है अगर यह उद्देश्य बन जाय कि हमें बद्रीनारायण जाना है तो फिर उसका मार्ग भी मिल जायगावहाँ जानेके साधन भी मिल जायेंगे और बतानेवाला भी मिल जायगा । कहाँसे जाना हैकैसे जाना हैपैदल जाना है कि मोटरसेयह सब तो बादमें हो जायगा,पर ‘हमें बद्रीनारायण जाना है’यह विचार तो पहले ही खुदका होना चाहिये । ऐसे ही मनुष्यजन्मका मूल उद्देश्य भगवान्‌की प्राप्ति करना है । परन्तु मनुष्यजन्म पाकर भी इस उद्देश्यको न पहचाननेके कारण मनुष्य पतनके मार्गपर जा रहा है !

यह मनुष्यजन्म बहुत जन्मोंके अन्तमें मिलता है‒
लब्ध्वा सुदुर्लभमिदं बहुसम्भवान्ते
                               (श्रीमद्भा ११ । ९ । २९)

बहूनां जन्मनामन्ते     (गीता ७ । ११)

 एक मार्मिक बात है कि यह मनुष्यजन्म सब जन्मोंका आदि जन्म भी है और अन्तिम जन्म भी है । जन्मोंका आरम्भ भी मनुष्यजन्मसे हुआ है और उनका अन्त भी मनुष्यजन्ममें ही होगा । जन्मोंका आरम्भ कब हुआकैसे हुआकिसने किया आदि बातोंको जान भी नहीं सकते और जाननेकी जरूरत भी नहीं है । परन्तु जन्मोंका अन्त कर सकते हैं और अन्त करनेकी जरूरत भी है । गीतामें आया है‒
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् ।
तं तमेवैति कौन्तेय  सदा  तद्भावभावितः ॥
                                                          (८ । ६)
‘हे कौन्तेय ! मनुष्य अन्तकालमें जिस-जिस भी भावका स्मरण करते हुए शरीर छोड़ता हैवह उस (अन्तकाल) के भावसे सदा भावित होता हुआ उस-उसको ही प्राप्त होता है अर्थात् उस-उस योनिमें ही चला जाता है ।’

इस बातसे यह सिद्ध हुआ कि मनुष्यजन्म मिलनेके बाद आगेका जन्म हम तैयार करते हैं‒‘कारणं गुणसङ्गोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु ॥’ (गीता १३ । २१) । तात्पर्य है कि जन्म-मरणमें जानेके लिये अथवा उससे मुक्त होनेके लिये हम स्वतन्त्र हैं । अगर हमें सदाके लिये जन्म-मरणसे मुक्त होना है तो इसके लिये सबसे मुख्य बात यह है कि हमारा एकमात्र उद्देश्य परमात्माकी प्राप्ति हो । अपना कल्याण करना हैजीवन्तुक्त होना हैमुक्ति प्राप्त करनी हैविदेह कैवल्य प्राप्त करना हैसदाके लिये जन्म-मरणसे छूटना है,दुःखोंका अत्यन्त अभाव करना हैमहान् आनन्दको प्राप्त करना हैपरतन्त्रतासे छूटकर परम स्वतन्त्रताको प्राप्त करना हैभगवान्‌के दर्शन करना हैभगवत्प्रेम प्राप्त करना है‒ये अलग-अलग नाम साधनके अनुसार हैंपर तत्त्वसे एक ही हैं । साधन अलग-अलग हैंपर उद्देश्य सबका एक ही है । वह उद्देश्य जितना दृढ़ होगाउतना ही मनुष्य स्वतः आगे बढ़ जायगा ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जिन खोजा तिन पाइया’ पुस्तकसे