।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
पौष शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.–२०७०, मंगलवार
मकरसंक्रांति
उद्देश्यकी दृढ़तासे लाभ



(गत ब्लॉगसे आगेका)
जैसे भाई-बहन सत्संगमें आते हैं तो सबसे पहले उनका यह विचार होता है कि हमें सत्संगमें चलना है । फिर किस तरह चलना है, बससे चलना हैटैक्सीसे चलना है,साइकिलसे चलना है या पैदल चलना है‒यह सब प्रबन्ध हो जाता है । सत्संगमें जानेके लिये तो दूसरेकी सहायता भी ले सकते हैंपर वहाँ जानेका विचार तो खुदको ही करना पड़ेगा । ऐसे ही हमारा यह विचार बन जाय कि अब हमें परमात्मतत्त्वकी प्राप्ति करनी है । दूसरे लोग क्या करते हैं,क्या नहीं करते‒इससे हमारा कोई मतलब न रहे ।
तेरे भावें जो करौ,      भलौ बुरौ संसार ।
नारायन तू बैठि कैअपनौ भुवन बुहार ॥

संसार अच्छा करे या बुरा करेहमें उससे क्या मतलब हमें तो अपना असली काम करना है । परमात्म-प्राप्तिके सिवाय कोई भी काम स्थायी नहीं है । कोई धन कमाता हैकोई यश कमाता हैकोई शरीरको ठीक करता है,कोई नीरोगताके पीछे लगा हैपर ये काम सिद्ध होनेवाले नहीं हैं । अगर हो भी जायें तो इन सबका अन्त होगा ।परन्तु परमात्मप्राप्ति होगी तो वह सदाके लिये होगीउसका अन्त नहीं होगा ।

एक मार्मिक बात है कि सब-के-सब मनुष्य परमात्मप्राप्तिके अधिकारी हैं । भगवान्‌ने कहा है‒
अपि    चेत्सुदुराचारो     भजते    मामनन्यभाक् ।
साधुरेव  स  मन्तव्यः    सम्यग्व्यवसितो  हि  सः ॥
क्षिप्रं  भवति  धर्मात्मा   शश्वच्छान्तिं निगच्छति ।
कौन्तेय प्रतिजानीहि       न  मे  भक्तः प्रणश्यति ॥
मां हि पार्थ  व्यपाश्रित्य   येऽपि  स्युः  पापयोनय ।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ॥
किं पुनर्ब्राह्मणाः   पुण्या    भक्ता   राजर्षयस्तथा ।
अनित्यमसुखं  लोकमिमं     प्राप्य  भजस्व  माम् ॥
                                              (गीता ९ । ३०‒३३)
‘अगर कोई दुराचारी-से-दुराचारी भी अनन्यभावसे मेरा भजन करता है तो उसको साधु ही मानना चाहिये । कारण कि उसने निश्चय बहुत श्रेष्ठ और अच्छी तरह कर लिया है । वह तत्काल धर्मात्मा हो जाता है और निरन्तर रहनेवाली शान्तिको प्राप्त हो जाता है । हे कुन्तीनन्दन ! तुम प्रतिज्ञा करो कि मेरे भक्तका विनाश (पतन) नहीं होता ।’

 ‘हे पार्थ ! जो भी पापयोनिवाले हों तथा जो भी स्त्रियाँ, वैश्य और शूद्र होंवे भी सर्वथा मेरे शरण होकर निःसन्देह परमगतिको प्राप्त हो जाते हैं । जो पवित्र आचरणवाले ब्राह्मण और ऋषिस्वरूप क्षत्रिय भगवान्‌के भक्त होंवे परमगतिको प्राप्त हो जायँ, इसमें तो कहना ही क्या है । इसलिये इस अनित्य और सुखरहित शरीरको प्राप्त करके तू मेरा भजन कर ।’

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जिन खोजा तिन पाइया’ पुस्तकसे