।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
पौष शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.–२०७०, बुधवार
व्रत-पूर्णिमा, खिचड़ी, पोंगल
उद्देश्यकी दृढ़तासे लाभ



(गत ब्लॉगसे आगेका)
यहाँ भगवान्‌ने परमात्मप्राप्तिके सात अधिकारियोंके नाम लिये हैं‒दुराचारीपापयोनिस्त्रियाँ, वैश्यशूद्र,ब्राह्मण और क्षत्रिय । इन सातोंसे बाहर कोई भी मनुष्य नहीं है । कैसा ही जन्म होकैसी ही जाति होकैसा ही आचरण हो और पूर्वजन्मके कितने ही पाप होंपर भगवान्‌की प्राप्तिमें सब अधिकारी हैं । ब्राह्मणक्षत्रियवैश्य और शूद्र‒इन चारों वर्णोंका नाम आ गया । कोई चारों वर्णोंमें केवल पुरुष-ही-पुरुष न समझ लेइसलिये स्त्रियोंका नाम अलगसे आया है । जो चारों वर्णोंसे नीचे हैंवे यवनहूणखस् आदि सब पापयोनिमें आ गये* । मनुष्योंके सिवाय दूसरे जीव (पशु,पक्षी आदि) भी ‘पापयोनि’ में लिये जा सकते हैंक्योंकि जीवमात्र भगवान्‌का ही अंश होनेसे भगवान्‌की तरफ चलनेमें (भगवान्‌की ओरसे) किसीके लिये भी मना नहीं है । जो वर्तमानमें पाप कर रहा हैवह ‘दुराचारी’ है और पूर्वजन्मके पापोंके कारण जिसका नीच योनिमें जन्म हुआ है,वह ‘पापयोनि’ है । तात्पर्य है कि दुराचारी-से-दुराचारी और नीच-से-नीच योनिवाला भी परमात्मप्राप्तिका अधिकारी है । जो पूर्वजन्मके पुण्यात्मा हैंउनको पवित्र आचरणवाले ब्राह्मण कहा और जो इस जन्ममें पुण्यात्मा हैंउनको ऋषिस्वरूप क्षत्रिय कहाऐसे ही जो पूर्वजन्मके पापी हैं,उनको पापयोनि कहा और जो इस जन्ममें पापी हैंउनको सुदुराचारी कहा । ये सभी प्रकारके मनुष्य परमात्माको प्राप्त कर सकते हैं । इसलिये अनित्य और सुखरहित इस शरीरको पाकर अर्थात् हम जीते रहें और सुख भोगते रहें‒ऐसी कामनाको छोड़कर भगवान्‌का भजन करना चाहिये । यह मनुष्य-शरीर भजन करनेके लिये है सुख-भोगके लिये नहीं‒‘एहि तन कर कल बिषय न भाई’ (मानस ७ । ४४ । १) । भजन करनेके लिये ही सबसे पहला काम है‒अपने उद्देश्यको पहचानना । उद्देश्यकी दृढ़ता होनेपर उसकी पूर्तिकी सामग्री अपने-आप मिलेगी ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जिन खोजा तिन पाइया’ पुस्तकसे
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[*] किरातहूणान्ध्रपुलिन्दपुल्कसा    आभीरकङ्का यवना: खसादय: ।
    येऽन्ये च पापा यदुपाश्रयाश्रया: शुध्यन्ति तस्मै प्रभविष्णवे नम: ॥
                                            (श्रीमद्धा २ । ४ । १८)
‘जिनके आश्रित भक्तोंका आश्रय लेकर किरातहूणआन्ध्र,पुलिन्दपुल्कसआभीरकंकयवनखस आदि अधम जातिके लोग और इनके सिवाय अन्य पापीलोग भी शुद्ध हो जाते हैंउन जगत्प्रभु भगवान् विष्णुको नमस्कार है ।’

जैसे भगवान्‌ने पापी-से-पापी व्यक्तिको भी भक्तिका अधिकारी बताया हैऐसे ही उसको ज्ञानका अधिकारी भी बताया हैजैसे‒
अपि चेदसि पापेभ्य: सर्वेभ्यः पापकृत्तम: ।
सर्वं  ज्ञानप्लवेनैव  वृजिन  सन्तरिष्यसि ॥
                                                 ( गीता ४ । ३६)
         ‘अगर तू सब पापियोंसे भी अधिक पापी है, तो भी तू ज्ञानरूपी नौकाके द्वारा निःसन्देह सम्पूर्ण पाप-समुद्रसे अच्छी तरह तर जायगा ।’