।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
पौष पूर्णिमा, वि.सं.–२०७०, गुरुवार
पूर्णिमा, माघ-स्नानारम्भ
उद्देश्यकी दृढ़तासे लाभ



(गत ब्लॉगसे आगेका)
‘किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा’‒इसके बीचमें ‘भक्ताः’ पद आया हैजिसका तात्पर्य है कि पवित्र आचरणवाले ब्राह्मणोंकी और ऋषिस्वरूप क्षत्रियोंकी महिमा नहीं हैप्रत्युत उनमें जो भक्ति हैउस भक्तिकी महिमा है । इसलिये भगवान्‌ने पहले ही कह दिया‒
समोऽहं सर्वभूतेषु       न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ॥
                                                (गीता ९ । २१)
‘मैं सम्पूर्ण प्राणियोंमें समान हूँ । उन प्राणियोंमें न तो कोई मेरा द्वेषी है और न कोई प्रिय है । परन्तु जो भक्तिपूर्वक मेरा भजन करते हैंवे मेरेमें हैं और मैं उनमें हूँ ।’

तात्पर्य है कि भगवान्‌का न तो दुराचारी तथा पापयोनिके साथ द्वेष है और न पुण्यात्मा ब्राह्मणों तथा क्षत्रियोंके साथ स्नेह है । वे तो सब प्राणियोंमें समान हैं । परन्तु जो भक्तिपूर्वक भगवान्‌का भजन करता हैवह किसी भी देशवेशवर्णआश्रमजातिसम्प्रदाय आदिका क्यों न होउसका भगवान्‌से घनिष्ठ सम्बन्ध है । इसलिये भगवान्‌ने भजन करनेकी आज्ञा दी है‒‘भजस्व माम्’ । परन्तु यह तभी सिद्ध होगाजब हमारा यह दृढ़ उद्देश्य होगा कि हमें इसी जन्ममें परमात्मतत्त्वको प्राप्त करना है ।

यह कितनी विलक्षण बात है कि हम कैसे ही होंपर भगवत्प्राप्तिके लिये हम सब-के-सब अधिकारी हैं । भगवान्‌ने कितनी छूट दी है ! भगवान्‌ने भजन करनेके लिये मनुष्य-शरीर दिया है तो फिर भजन करनेकी सामग्री भी बचाकर नहीं रखी हैअन्यथा ‘ये भजन्ति तु मां भक्त्या’ और ‘भजस्व माम्’ कैसे कहते हम भी भगवान्‌से कह सकते थे कि महाराज ! आपने हमारेको साधन-सामग्री दी ही नहीं,हमारी सहायता की ही नहींफिर हम भजन कैसे करें पर हम ऐसा नहीं कह सकतेक्योंकि भगवान्‌ने सबको भजनकी पूरी साधन-सामग्री दी है । जैसेकहीं सत्संगका आयोजन होता है तो पहले उसकी तैयारी करते हैंबादमें लोगोंको निमन्त्रण देते हैं । पण्डाल पहले बनता हैलोगोंको बादमें बुलाते हैं । ऐसे ही भगवान्‌ने मनुष्यजन्म दिया है तो अपनी प्राप्तिकी सामग्री पहले दी है । भगवान्‌ने दुराचारी-से-दुराचारी तथा पापयोनिको भी अपनी प्राप्तिका निमन्त्रण दिया है और ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यशूद्र तथा स्त्रियोंको भी अपनी प्राप्तिका निमन्त्रण दिया है । अब जरूरत इस बातकी है कि हम अपना उद्देश्य भगवत्प्राप्तिका बना लें ।

संसारमें बिना स्वार्थके सबका हित करनेवाले दो ही हैं‒भगवान् और उनके भक्त ।
हेतु रहित जग जुग उपकारी ।
तुम्ह तुम्हार सेवक असुसारी ॥
                                      (मानस ७ । ४७ । ३)

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जिन खोजा तिन पाइया’ पुस्तकसे