।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
माघ कृष्ण तृतीया, वि.सं.–२०७०, रविवार
उद्देश्यकी दृढ़तासे लाभ


(गत ब्लॉगसे आगेका)
इस प्रकार भगवान्‌ने कल्याणकी सामग्री देनेमें कोई कमी नहीं रखी है । प्रत्येक परिस्थितिमें भगवान्‌की दया लबालब भरी हुई है ! पुण्यके फल (अनुकूल परिस्थिति) में भी भगवान्‌की दया है और पापके फल (प्रतिकूल परिस्थिति) में भी भगवान्‌की कृपा है[*] । अनुकूल परिस्थितिमें साधन करनेमें सहायता मिलती है और प्रतिकूल परिस्थितिमें पापोंका नाश होकर कष्ट सहनेकी सामर्थ्य आती है । चाहे अनुकूल परिस्थिति आयेचाहे प्रतिकूल परिस्थिति आये,हमारा काम तो भगवान्‌के सम्मुख होकर उनका भजन करना है और वह भजन तब होगाजब हम दृढ़तापूर्वक एक उद्देश्यलक्ष्य बना लेंगे कि हमें तो भगवान्‌की प्राप्ति ही करनी है । जैसा कि पार्वतीजीने कहा है‒
जन्म कोटि लगि रगर हमारी ।
बरउँ संभु न  त रहठें कुआरी ॥
तजउँ  न नारद  कर  उपदेसू ।
आप कहहि  सत्‌  बार महेसू ॥
                                                          (मानस १ । ८१ । ५)

एक भक्त इमलीके वृक्षके नीचे बैठकर भगवान्‌का भजन कर रहा था । एक दिन वहाँ नारदजी महाराज आ गये । उस भक्तने नारदजीसे कहा कि आप इतनी कृपा करें कि जब भगवान्‌के पास जाये तब उनसे पूछ लें कि वे मुझे कब मिलेंगे नारदजी भगवान्‌के पास गये और पूछा कि अमुक स्थानपर एक भक्त इमलीके वृक्षके नीचे बैठा है और भजन कर रहा हैउसको आप कब मिलेंगे भगवान्‌ने कहा कि उस वृक्षके जितने पत्ते हैं, उतने जन्मोंके बाद मिलूँगा । ऐसा सुनकर नारदजी उदास हो गये । वे उस भक्तके पास गयेपर उससे कुछ कहा नहीं । भक्तने प्रार्थना की कि भगवान्‌ने क्या कहा हैकह तो दो । नारदजी बोले कि तुम सुनोगे तो हताश हो जाओगे । जब भक्तने बहुत आग्रह कियातब नारदजी बोले कि इस वृक्षके जितने पत्ते हैंउतने जन्मोंके बाद भगवान्‌की प्राप्ति होगी । भक्तने उत्सुकतासे पूछा कि क्या भगवान्‌ने खुद ऐसा कहा है नारदजीने कहा कि हाँ, खुद भगवान्‌ने कहा है । यह सुनकर वह भक्त खुशीसे नाचने लगा कि भगवान् मेरेको मिलेगेमिलेंगेमिलेंगे !! क्योंकि भगवान्‌के वचन झूठे नहीं हो सकते । इतनेमें ही भगवान् वहाँ प्रकट हो गये ! नारदजीने देखा तो उनको बड़ा आश्चर्य हुआ । वे भगवान्‌से बोले कि महाराज ! अगर यही बात थी तो मेरी फजीतीं क्यों करायी आपको जल्दी मिलना था तो मिल जाते । मेरेसे तो कहा कि इतने जन्मोंके बाद मिलूँगा और आप अभी आ गये ! भगवान्‌ने कहा कि नारद ! जब तुमने इसके विषयमें पूछा थातब यह जिस चालसे भजन कर रहा थाउस चालसे तो इसको उतने ही जन्म लगते । परन्तु अब तो इसकी चाल ही बदल गयी ! यह तो ‘भगवान् मेरेको मिलेंगे’‒इतनी बातपर ही मस्तीसे नाचने लग गया ! इसलिये मुझे अभी ही आना पड़ा । कारण कि उद्देश्यकी सिद्धिमें जो अटल विश्वासअनन्यतादृढ़ताउत्साह होता हैउससे भजन तेज हो जाता है ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जिन खोजा तिन पाइया’ पुस्तकसे
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          [*] मनुष्यको कर्मबन्धनसे मुक्त करनेके लिये भगवान् उसके मनके अनुकूल परिस्थिति भेजते हैं तो यह भगवान्‌की ‘दया’ है और उसके पापोंका नाश करनेके लिये उसके मनके प्रतिकूल परिस्थिति भेजते हैं तो यह भगवान्‌की ‘कृपा’ है ।

          भगवान्‌की प्राप्तिके उद्देश्यसे जपचिन्तनविचार आदि करना ‘भजन’ है ।