(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक सन्त थे । वे एक जाटके घर गये । जाटने उनकी बड़ी सेवा की । सन्तने उससे कहा कि रोजाना नामजप करनेका कुछ नियम ले लो । जाटने कहा कि बाबा, हमारेको वक्त नहीं मिलता । सन्तने कहा कि अच्छा, रोजाना एक बार ठाकुरजीकी मूर्तिका दर्शन कर आया करो । जाटने कहा कि मैं तो खेतमें रह जाता हूँ, ठाकुरजीकी मूर्ति गाँवके मन्दिरमें है,कैसे करूँ ? सन्तने उसको कई साधन बताये कि वह कुछ-न-कुछ नियम ले ले, पर वह यही कहता रहा कि मेरेसे यह बनेगा नहीं । मैं खेतमें काम करूँ या माला लेकर जप करूँ ! इतना समय मेरे पास कहाँ है ? बाल-बच्चोंका पालन-पोषण करना है; तुम्हारे-जैसे बाबाजी थोड़े ही हूँ कि बैठकर भजन करूँ । सन्तने कहा कि अच्छा, तू क्या कर सकता है ? जाट बोला कि हमारे पड़ोसमें एक कुम्हार रहता है, उसके साथ मेरी मित्रता है; खेत भी पास-पासमें है और घर भी पास-पासमें है; रोजाना नियमसे एक बार उसको देख लिया करूँगा । सन्तने कहा कि ठीक है, उसको देखे बिना भोजन मत करना । जाटने स्वीकार कर लिया । जब उसकी स्त्री कहती कि रोटी तैयार हो गयी, भोजन कर लो तो वह चट बाड़पर चढ़कर कुम्हारको देख लेता और भोजन कर लेता । इस नियममें वह पक्का रहा ।
एक दिन जाटको खेतमें जल्दी जाना था, इसलिये भोजन जल्दी तैयार कर लिया । उसने बाड़पर चढ़कर देखा तो कुम्हार दीखा नहीं । पूछनेपर पता लगा कि वह तो मिट्टी खोदने बाहर गया है ! जाट बोला कि कहाँ मर गया, कम-से-कम देख तो लेता । अब जाट उसको देखनेके लिये तेजीसे भागा । उधर कुम्हारको मिट्टी खोदते-खोदते एक हाँडी मिल गयी, जिसमें तरह-तरहके रत्न, अशर्फियाँ भरी हुई थीं । उसके मनमें आया कि कोई देख लेगा तो मुश्किल हो जायगी ! अतः वह देखनेके लिये ऊपर चढ़ा तो सामने वह जाट आ गया ! कुम्हारको देखते ही जाट वापिस भागा तो कुम्हारने समझा कि उसने वह हाँडी देख ली और अब वह आफत पैदा करेगा । कुम्हारने आवाज लगायी कि अरे, जा मत, जा मत ! जाट बोला कि बस, देख लिया, देख लिया ! कुम्हार बोला कि अच्छा, देख लिया तो आधा तेरा, आधा मेरा, पर किसीसे कहना मत ! जाट वापिस आया तो उसको धन मिल गया ।उसके मनमें विचार आया कि सन्तसे अपना मनचाहा नियम लेनेमें इतनी बात है, अगर सदा उनकी आज्ञाका पालन करूँ तो कितना लाभ है ! ऐसा विचार करके वह जाट और उसका मित्र कुम्हार‒दोनों ही भगवान्के भक्त बन गये ।
तात्पर्य यह है कि हम दृढ़तासे अपना एक उद्देश्य बना लें कि चाहे जो हो जाय, हमें तो भगवान्की तरफ चलना है,भगवान्का भजन करना है । उद्देश्य बनानेकी अपेक्षा भी उद्देश्यको पहचान लें । कारण कि उद्देश्य पहले बना है,मनुष्यजन्म पीछे मिला है । मनुष्यजन्म केवल भगवत्प्राप्तिके लिये ही मिला है‒इस उद्देश्यको पहचान लें, सन्देहरहित मान लें तो फिर भजन अपने-आप होगा ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जिन खोजा तिन पाइया’ पुस्तकसे
|