।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
माघ कृष्ण चतुर्थी, वि.सं.–२०७०, सोमवार
उद्देश्यकी दृढ़तासे लाभ


(गत ब्लॉगसे आगेका)
एक सन्त थे । वे एक जाटके घर गये । जाटने उनकी बड़ी सेवा की । सन्तने उससे कहा कि रोजाना नामजप करनेका कुछ नियम ले लो । जाटने कहा कि बाबाहमारेको वक्त नहीं मिलता । सन्तने कहा कि अच्छारोजाना एक बार ठाकुरजीकी मूर्तिका दर्शन कर आया करो । जाटने कहा कि मैं तो खेतमें रह जाता हूँठाकुरजीकी मूर्ति गाँवके मन्दिरमें है,कैसे करूँ सन्तने उसको कई साधन बताये कि वह कुछ-न-कुछ नियम ले लेपर वह यही कहता रहा कि मेरेसे यह बनेगा नहीं । मैं खेतमें काम करूँ या माला लेकर जप करूँ ! इतना समय मेरे पास कहाँ है बाल-बच्चोंका पालन-पोषण करना हैतुम्हारे-जैसे बाबाजी थोड़े ही हूँ कि बैठकर भजन करूँ । सन्तने कहा कि अच्छातू क्या कर सकता है जाट बोला कि हमारे पड़ोसमें एक कुम्हार रहता हैउसके साथ मेरी मित्रता हैखेत भी पास-पासमें है और घर भी पास-पासमें हैरोजाना नियमसे एक बार उसको देख लिया करूँगा । सन्तने कहा कि ठीक हैउसको देखे बिना भोजन मत करना । जाटने स्वीकार कर लिया । जब उसकी स्त्री कहती कि रोटी तैयार हो गयीभोजन कर लो तो वह चट बाड़पर चढ़कर कुम्हारको देख लेता और भोजन कर लेता । इस नियममें वह पक्का रहा ।

एक दिन जाटको खेतमें जल्दी जाना थाइसलिये भोजन जल्दी तैयार कर लिया । उसने बाड़पर चढ़कर देखा तो कुम्हार दीखा नहीं । पूछनेपर पता लगा कि वह तो मिट्टी खोदने बाहर गया है ! जाट बोला कि कहाँ मर गयाकम-से-कम देख तो लेता । अब जाट उसको देखनेके लिये तेजीसे भागा । उधर कुम्हारको मिट्टी खोदते-खोदते एक हाँडी मिल गयीजिसमें तरह-तरहके रत्नअशर्फियाँ भरी हुई थीं । उसके मनमें आया कि कोई देख लेगा तो मुश्किल हो जायगी ! अतः वह देखनेके लिये ऊपर चढ़ा तो सामने वह जाट आ गया ! कुम्हारको देखते ही जाट वापिस भागा तो कुम्हारने समझा कि उसने वह हाँडी देख ली और अब वह आफत पैदा करेगा । कुम्हारने आवाज लगायी कि अरेजा मतजा मत ! जाट बोला कि बसदेख लियादेख लिया ! कुम्हार बोला कि अच्छादेख लिया तो आधा तेराआधा मेरापर किसीसे कहना मत ! जाट वापिस आया तो उसको धन मिल गया ।उसके मनमें विचार आया कि सन्तसे अपना मनचाहा नियम लेनेमें इतनी बात हैअगर सदा उनकी आज्ञाका पालन करूँ तो कितना लाभ है ! ऐसा विचार करके वह जाट और उसका मित्र कुम्हार‒दोनों ही भगवान्‌के भक्त बन गये ।

तात्पर्य यह है कि हम दृढ़तासे अपना एक उद्देश्य बना लें कि चाहे जो हो जायहमें तो भगवान्‌की तरफ चलना है,भगवान्‌का भजन करना है । उद्देश्य बनानेकी अपेक्षा भी उद्देश्यको पहचान लें । कारण कि उद्देश्य पहले बना है,मनुष्यजन्म पीछे मिला है । मनुष्यजन्म केवल भगवत्प्राप्तिके लिये ही मिला है‒इस उद्देश्यको पहचान लेंसन्देहरहित मान लें तो फिर भजन अपने-आप होगा ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जिन खोजा तिन पाइया’ पुस्तकसे