।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
माघ कृष्ण दशमी, वि.सं.–२०७०, रविवार
गणतन्त्रदिवस, एकादशी-व्रत कल है
मुक्तिमें सबका समान अधिकार



(गत ब्लॉगसे आगेका)
किरातहूणान्ध्रपुलिन्दपुल्कसा
                          आभीरकङ्का यवनाः खसादयः ।
येऽन्ये च पापा यदुपाश्रयाश्रया
                          शुद्ध्यन्ति तस्मै प्रभविष्णवे नमः ॥
                                           (श्रीमद्भा २ । ४ । १८)

‘जिनके आश्रित भक्तोंका आश्रय लेकर किरातहूण,आन्ध्रपुलिन्दपुल्कसआभीरकंकयवनखस आदि अधम जातिके लोग और इनके सिवाय अन्य पापीलोग भी शुद्ध हो जाते हैंउन जगत्प्रभु भगवान् विष्णुको नमस्कार है ।’
जाति  पाँति  कुल  धर्म  बड़ाई ।
धन बल परिजन  गुन चतुराई ॥
भगति  हीन  नर  सोहइ कैसा ।
बिनु जल बारिद देखिअ जैसा ॥
                                        (मानस ३ । ३५ । ३)

व्याधस्याचरणं ध्रुवस्य च वयो विद्या गजेन्द्रस्य का,
का जातिर्विदुरस्य   यादवपतेरुग्रस्य   किं पौरुषम् ।
कुब्जायाः किमु नाम रूपमधिकं  किं  तत्सुदाम्नो धनं,
भक्त्या तुष्यति केवलं न च गुणैर्भक्तिप्रियो माधवः ॥

 ‘व्याधका कौन-सा श्रेष्ठ आचरण था ध्रुवकी कौन-सी बड़ी उम्र थी गजेन्द्रके पास कौन-सी विद्या थी ?विदुरकी कौन-सी ऊँची जाति थी यदुपति उग्रसेनका कौन-सा पराक्रम था कुब्जाका कौन-सा सुन्दर रूप था ?सुदामाके पास कौन-सा धन था फिर भी उन लोगोंको भगवान्‌की प्राप्ति हो गयी ! कारण कि भगवान्‌को केवल भक्ति ही प्यारी है । वे केवल भक्तिसे ही सन्तुष्ट होते हैं,आचरणविद्या आदि गुणोंसे नहीं ।’

नालं   द्विजत्वं    देवत्वमृषित्वं   वासुरात्मजाः ।
प्रीणनाय  मुकुन्दस्य    न    वृत्तं   न   बहुज्ञता ॥
न दानं न तपो नेज्या  न  शौचं  न  व्रतानि  च ।
प्रीयतेऽमलया  भक्त्या  हरिरन्यद्  विडम्बनम् ॥
दैतेया  यक्षरक्षांसि   स्त्रियः  शूद्रा    वजौकसः ।
खगा मृगाः पापजीवाः सन्ति ह्यच्युततां गताः ॥
(श्रीमद्धा ७ । ७ । ५१-५२५४)

 ‘दैत्यबालको ! भगवान्‌को प्रसन्न करनेके लिये केवल ब्राह्मणदेवता या ऋषि होनासदाचार और विविध ज्ञानोंसे सम्पन्न होना तथा दानतपयज्ञशारीरिक और मानसिक शौच और बड़े-बड़े व्रतोंका अनुष्ठान ही पर्याप्त नहीं है । भगवान् केवल निष्काम प्रेम-भक्तिसे ही प्रसन्न होते हैं । और सब तो विडम्बनामात्र है ! भगवान्‌की भक्तिके प्रभावसे दैत्य,यक्षराक्षसस्त्रियों शूद्रगोपालकअहीरपक्षीमृग और बहुत-से पापी जीव भी भगवद्भावको प्राप्त हो गये हैं ।’

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)     
 ‒‘तत्त्वज्ञान कैसे हो ?’ पुस्तकसे