।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
पौष शुक्ल तृतीया, वि.सं.–२०७०, शनिवार
साधकका कर्तव्य


(गत ब्लॉगसे आगेका)
मिली हुई वस्तु आदिका सदुपयोग करनेकी अपेक्षा उसका दुरुपयोग न करना श्रेष्ठ है ।* अपनी जानकारीका आदर करनेकी अपेक्षा उसका अनादर न करना श्रेष्ठ है । भगवान्‌पर विश्वास करनेकी अपेक्षा संसारपर विश्वास न करना श्रेष्ठ है । कारण यह है कि विधिकी अपेक्षा निषेध श्रेष्ठ और बलवान् होता है । विधि सीमित होती है और निषेध (त्याग) असीम होता है । विधिमें कमी रह सकती है और अभिमान भी आ सकता हैपर निषेधमें कोई कमी नहीं रहती और अभिमान भी नहीं आता । जैसेसत्य बोलनेवाला कभी झूठ भी बोल सकता है और उसको ‘मैं सत्य बोलनेवाला हूँ’ ऐसा अभिमान भी आ सकता हैपरन्तु झूठ न बोलनेवाला सावधान साधक जब भी बोलेगासत्य ही बोलेगा अथवा चुप रहेगा और उसको सत्य बोलनेका अभिमान भी नहीं आयेगा 

अगर साधक प्राप्त वस्तुपरिस्थिति आदिका दुरुपयोग न करे तो ‘कर्मयोग’ सिद्ध हो जायगा अर्थात् कुछ करना बाकी नहीं रहेगा । अगर वह अपनी जानकारीका अनादर न करे तो ‘ज्ञानयोग’ सिद्ध हो जायगा अर्थात् कुछ जानना बाकी नहीं रहेगा । अगर वह संसारपर विश्वास न करे तो ‘भक्तियोग’ सिद्ध हो जायगा अर्थात् कुछ पाना बाकी नहीं रहेगा । साधकसे भूल यही होती है कि वह प्राप्त वस्तु,परिस्थिति आदिका सदुपयोग न करके अप्राप्त वस्तु,परिस्थिति आदिकी इच्छा करता हैअपनी जानकारीको महत्त्व न देकर नाशवान्‌को महत्व देता है और भगवान्‌पर विश्वास न करके संसारपर विश्वास करता है । इस भूलके कारण उसका करनाजानना और पाना बाकी रहता है अर्थात् उसको पूर्णताकी प्राप्ति नहीं होती ।

अगर साधक प्राप्त वस्तुका दुरुपयोग न करे तो उसमें अपनी जानकारीका आदर करनेकी योग्यता आ जाती है तथा अपनी जानकारीका आदर करनेसे भगवान्‌पर विश्वास करनेकी योग्यता आ जाती है ।

कर्मयोगज्ञानयोग और भक्तियोग‒इन तीनोमेंसे किसी भी एक साधनकी सिद्धि होनेपर शेष दोनों साधनोंकी सिद्धि स्वत: हो जाती है । परन्तु साधकमें अपने साधनका आग्रह और अभिमान रहेगा तो ऐसा होनेमें कठिनता है ! हाँ, यदि साधक अपना आग्रह और अभिमान न रखे तो सच्ची बात स्वत: प्रकट हो जायगी ।  

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जिन खोजा तिन पाइया’ पुस्तकसे
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     * मिली हुई वस्तुको अपनी मानना तथा उसको अपने सुखभोगमें लगाना उसका दुरुपयोग है ।
      इस विषयको भलीभाँति समझनेके लिये ‘साधन और साध्य’नामक पुस्तकमें ‘निषेधात्मक साधन’ शीर्षक लेख पढ़ना चाहिये ।