।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
माघ शुक्ल एकादशी, वि.सं.–२०७०, सोमवार
जयाएकादशीव्रत (सबका)
भक्ति और उसकी महिमा


(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रेमी भक्त मुक्ति नहीं चाहतेक्योंकि बन्धन होनेसे ही मुक्तिकी इच्छा होती है । संसारमें राग होना ही बन्धन है ।प्रेमी भक्तोंमें सांसारिक रागरूप बन्धन रहता ही नहीं । उसका तो बसएक ही बन्धन रहता है‒

अब तो बन्ध मोक्षकी इच्छा व्याकुल कभी न करती है ।
मुखड़ा ही नित नव बन्धन है, मुक्ति चरणसे झरती है ॥

भगवान्‌का मुख ही भक्तोंके लिये बन्धन हैजो नित्य नया-नया होता रहता है !

दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसम्भवम् ।
                                                                             (कृष्णाष्टक ५)

 ‘आज अनूप बनीयुगल छवि आज अनूप बनी ।’

इसलिये भक्तिका रस प्रतिक्षण स्वाभाविक बढ़ता रहता है । ज्ञानका आनन्द तो अखण्ड शान्तएकरस रहता है,पर भक्तिका आनन्द अनन्त होता है । चन्द्रमाकी कलाएँ बढ़ती हैं तो उसकी पूर्णिमा आ जाती हैपर भगवत्पेमरूपी चन्द्रमें कभी पूर्णिमा आती ही नहीं‒
प्रेम सदा बढ़िबौ करैज्यों ससिकला सुबेष ।
पै  पूनौ  यामें  नहीं तातें  कबहुँ  न  सेष ॥
                                                                         (पद-रत्नाकर ६४६)

भगवान्‌की अनन्त शक्तियोंमें दो विशेष शक्तियाँ हैं‒ऐश्वर्य और माधुर्य । ऐश्वर्यमें प्रभाव है और माधुर्यमें प्रेम है ।उस माधुर्यमें भगवान् अपना ऐश्वर्यअपना प्रभावअपनी भगवत्ता भूल जाते हैं । भक्तोंका प्रेम भगवान्‌को भोला बना देता है । माता यशोदा भगवान् श्रीकृष्णको पकड़ लेती हैं तो वे डरके मारे रोने लग जाते हैं कि मैया मारेगी ! भय भी जिससे भयभीत होता है वे भगवान् माँसे भयभीत हो जाते हैं‒यह भगवान्‌का माधुर्य है !

जहाँ प्रेम होता हैवहाँ भगवान् वशमें हो जाते हैं । भक्त भगवान्‌से प्रेम करते हैं तो भगवान् सोचते हैं कि मैं इनको क्या दूँ गोपिकाएँ भगवान्‌से प्रेम करती हैं तो भगवान् कहते हैं‒
न   पारयेऽहं          निरवद्यसंयुजां
स्वसाधुकृत्यं   विबुधायुषापि   व: ।
या माभजन्       दुर्जरगेहश्रृङ्खला:
संवृश्‌च्य तद् व: प्रतियातु साधुना ॥
                                                                (श्रीमद्भा १० । ३२ । २२)
‘मेरे साथ सर्वथा निर्दोष सम्बन्ध जोड़नेवाली तुम गोपिकाओंका मेरेपर जो ऋण हैउसको मैं देवताओंके समान लम्बी आयु पाकर भी नहीं चुका सकता । कारण कि बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी घरकी जिस ममतारूपी बेड़ियोंको सुगमतासे नहीं तोड़ पातेउनको तुमलोगोंने तोड़ डाला है ।’

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवान्‌ और उनकी भक्ति’ पुस्तकसे