।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
फाल्गुन कृष्ण षष्ठी, वि.सं.–२०७०, शुक्रवार
भगवान्‌का सगुण स्वरूप और भक्ति


(गत ब्लॉगसे आगेका)
एतस्य वा अक्षरस्य प्रशासने गार्गि सूर्याचन्द्रमसौ विधृतौ तिष्ठत एतस्य वा अक्षरस्य प्रशासने गार्गि धावापृथिव्यौ विधृते तिष्ठत....। (बृहदारण्यक ३ । ८ । ९)

‘हे गार्गि ! इस अक्षरके ही प्रशासनमें सूर्य और चन्द्रमा विशेषरूपसे धारण किये हुए स्थित रहते हैं । हे गार्गि ! इस अक्षरके ही प्रशासनमें द्युलोक और पृथ्वी विशेषरूपसे धारण किये हुए स्थित रहते हैं.... ।’

भयादस्याग्निस्तपति भयात् तपति सूर्य: ।
भयादिन्द्रश्च वायुश्च मृत्युर्धावति पञ्चम: ॥
                                                                          (कठ २ । ३ । ३)

 ‘इसीके भयसे अग्नि तपता है इसीके भयसे सूर्य तपता है तथा इसीके भयसे भयभीत होकर इन्द्रवायु और पाँचवें मृत्यु देवता अपने-अपने काममें प्रवृत्त हो रहे हैं ।’

गीतामें आया है‒
द्वाविमौ पुरुषौ लोके    क्षरश्चाक्षर एव च ।
क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते ॥
उत्तम: पुरुषस्त्वन्य:    परमात्मेत्युदाहृत: ।
वो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वर: ॥
                                                                           (१५ । १६ - १७)

 ‘इस संसारमें क्षर (नाशवान्) और अक्षर (अविनाशी)‒ये दो प्रकारके पुरुष हैं । सम्पूर्ण प्राणियोंके शरीर नाशवान् और कूटस्थ (जीवात्मा) अविनाशी कहा जाता है । उत्तम पुरुष तो अन्य ही हैजो परमात्मा नामसे कहा गया है । वही अविनाशी ईश्वर तीनों लोकोंमें प्रविष्ट होकर सबका भरण-पोषण करता है ।’

४. परमात्माके सगुण स्वरूपकी मुख्यता

गीतामें भगवान्‌ने प्रकृतिको अनादि कहा है‒
प्रकृतिं पुरुषं चैव विद्ध्यनादी उभावपि ।
                                                                            (१३ । ११)

यदि निर्गुणको सर्वोपरि मानें तो उनकी शक्ति प्रकृति अनादि कैसे होगी अत: वास्तवमें सगुण ही सर्वोपरि है । इसलिये गीतामें सगुण-साकार भगवान् श्रीकृष्णको ‘ब्रह्म’नामसे कहा गया हैजैसे‒

ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः ।
                                                                                        (५ । १०)

परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् ।
                                                                                (१० । १२)

गीतामें ब्रह्मके तीन नाम बताये गये हैं‒ ‘ॐ’‘तत्’और ‘सत्‌’ (१७ । २३) । नाम-नामीका सम्बन्ध होनेसे यह भी सगुण ही हुआ । वैष्णवलोग भी सगुण- कार भगवान्‌के उत्सवको ‘ब्रह्मोत्सव’ नामसे कहते हैं । श्रीमद्भागवतमें भी ब्रह्म (निर्गुण-निराकार)परमात्मा (सगुण-निराकार) और भगवान् (सगुण-साकार)‒तीनोंको एक बताया है‒
वदन्ति तत्तत्त्वविदस्तत्त्वं यज्ज्ञानमद्वयम् ।
ब्रह्मेति परमात्मेति  भगवानिति शब्द्यते ॥
                                                                                 (१ । २ । ११)

 ‘तत्वज्ञ महापुरुष उस ज्ञानस्वरूप एवं अद्वितीय तत्त्वको ही ब्रह्मपरमात्मा और भगवान्‒इन तीन नामोंसे कहते हैं ।’

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)    
‒‘भगवान्‌ और उनकी भक्ति’ पुस्तकसे