।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
फाल्गुन कृष्ण नवमी, वि.सं.–२०७०, रविवार
भगवान्‌का सगुण स्वरूप और भक्ति


(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रीमद्भागवतमें सगुणकी उपासना (भक्ति) को निर्गुण अर्थात् सत्त्वरज और तम‒तीनों गुणोंसे अतीत बताया गया हैजैसे‒‘मन्निकेत तु निर्गुणाम्’ (११ । २५ । २५),‘मत्सेवायां तु निर्गुणा’ (११ । २५ । २७) आदि । गीतामें भी आया हैकि सगुणकी उपासना करनेवाला तीनों गुणोंसे अतीत हो जाता है‒

मां च योऽव्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते ।
स गुणान्समतीत्यैतान्त्रह्मभूयाय   कल्पते ॥
                                                                            (१४ । २६)
ब्रह्मसूत्रमें भी ‘जन्माद्यस्य यत:’ (१ । १ । २)‒इस सूत्रके द्वारा सगुण ब्रह्मको ही मुख्य माना गया है । कारण कि सृष्टिका रचयिता सगुण ही हो सकता हैनिर्गुण नहीं । ब्रह्मसूत्रके द्वितीय अध्यायप्रथम पादमें भी ब्रह्मको विभिन्न युक्तियोंसे सृष्टिका कर्ता सिद्ध किया है और उसको समस्त शक्तियोंसे सम्पन्न बताया है‒‘सर्वोपेता च तद्दर्शनात्’ (२ । १ । ३०) । आदि शंकराचार्यजी महाराजने भी गीता-भाष्यमें‘पुरुषोत्तम’ को ब्रह्म माना है (१५ । १०) । ‘प्रबोध-सुधाकर’ में वे कहते हैं‒
  
                         भूतेध्वन्तर्यामी      ज्ञानमय:      सच्चिदानन्द: ।
                         प्रकृते पर: परात्मा यदुकुलतिलक: स एवायम् ॥ १९५ ॥

 ‘जो ज्ञानस्वरूपसच्चिदानन्दप्रकृतिसे परे परमात्मा सब भूतोंमें अन्तर्यामीरूपसे स्थित हैंये यदुकुलतिलक श्रीकृष्ण वही हैं ।’

उपनिषदोंमें भी ऐसे कई मन्त्र मिलते हैंजिनसे सगुणकी मुख्यता सिद्ध होती हैजैसे‒

                       एतज्ज्ञयं नित्यमेवात्मसंस्थं नात: परं वेदितव्यं हि किञ्चित् ।
                       भोक्ता भोग्य प्रेरितारं च मत्वा सर्वं प्रोक्तं त्रिविधं ब्रह्ममेतत् ॥
                                                                         (श्वेताश्वतर १ । १२)

 ‘अपने ही भीतर स्थित इस ब्रह्मको ही सर्वदा जानना चाहियेक्योंकि इससे बढ़कर जाननेयोग्य तत्त्व दूसरा कुछ भी नहीं है । भोक्ता (जीवात्मा)भोग्य (जड़वर्ग) और उनके प्रेरक परमेश्वरको जानकर मनुष्य सब कुछ जान लेता है । इस प्रकार यह तीन भेदोंमें बताया हुआ ही ब्रह्म है अर्थात् जीवात्माप्रकृति और परमात्मा‒तीनों समग्र ब्रह्मके ही रूप हैं ।’ *

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)    
‒‘भगवान्‌ और उनकी भक्ति’ पुस्तकसे
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* गीतामें जीवात्माप्रकृति और परमात्मा‒इन तीनोंका एक साथ वर्णन अलग-अलग नामोंसे इस प्रकार हुआ है‒

अध्याय/श्लोक
जीवात्मा
प्रकृति
परमात्मा
७ । ४‒६
परा प्रकृति            
अपरा प्रकृति       
अहम्
८ । ३-४
अध्यात्म; अधिदैव
कर्मअधिभूत
ब्रह्मअधियज्ञ
१३ । १-२
क्षेत्रज्ञ
क्षेत्र
माम्
१४-३-४
गर्भबीज
महद्ब्रह्म;योनि
अहम्पिता
१५ । १६‒१८
अक्षर
क्षर
पुरुषोत्तम