।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
माघ शुक्ल षष्ठी, वि.सं.–२०७०, बुधवार
भगवान्‌ और उनकी भक्ति


(गत ब्लॉगसे आगेका)
भक्त जप आदि तो इसलिये करता है कि इनके बिना और करें भी क्या ! क्योंकि बढ़िया-से-बढ़िया काम यही है । परन्तु भजनके द्वारा मैं भगवान्‌को प्राप्त कर लूँगा‒यह भाव उसमें नहीं होता । उसका यह भाव होता है कि वास्तवमें भजन भगवान्‌की कृपासे ही हो रहा है और भगवान्‌की प्राप्ति भी उनकी कृपासे ही होगी । भगवान्‌की कृपाके बिना अन्य कोई सहारा न हो‒यह अनन्यभक्ति है । अनन्यभक्तिसे भगवान् सुलभ हो जाते हैं । भगवान्‌के भजनसे बढ़कर मीठी चीज कोई है ही नहीं । इसलिये भक्त नित्य-निरन्तर भगवान्‌के भजनमें मस्त रहता है । भगवान् कहते हैं‒
मच्चित्ता मद्गतप्राणा     बोधयन्तः परस्परम् ।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ॥
                                                                           (गीता १० । १)
‘मेरेमें चित्तवालेमेरेमें प्राणोंको अर्पण करनेवाले भक्तजन आपसमें मेरे गुण-प्रभाव आदिको जनाते हुए और उनका कथन करते हुए ही नित्य-निरन्तर सन्तुष्ट रहते हैं और मेरेमें प्रेम करते हैं ।’

          कारण कि उनके लिये भगवान्‌के भजनके बिना कोई काम बाकी रहा ही नहीं । भागवतमें आया है‒

अकामः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः ।
तीव्रेण भक्तियोगेन      यजेत पुरुषं परम् ॥
                                                                   ( श्रीमद्भा २ । ३ । १०)
‘जो बुद्धिमान् मनुष्य हैवह चाहे सम्पूर्ण कामनाओंसे रहित होचाहे सम्पूर्ण कामनाओंसे युक्त होचाहे मोक्षकी कामनावाला होउसे तो केवल तीव्र भक्तियोगके द्वारा परमपुरुष भगवान्‌का ही भजन करना चाहिये ।’

कोई कहे कि मेरेको कुछ नहीं चाहियेमेरेमें किसी तरहकी कुछ भी कामना नहीं है तो क्या करूँ ? तो यही उत्तर मिलेगा कि केवल भगवान्‌का भजन करो । कोई कहे कि मेरेको तो सब कुछ चाहियेभोग भी चाहियेमोक्ष भी चाहियेइज्जत भी चाहियेनीरोगता भी चाहियेबेटा-बेटी भी चाहिये तो क्या करूँ ? तो यही उत्तर मिलेगा कि केवल भगवान्‌का भजन करो । कारण कि सब चीजें भगवान् ही दे सकते हैं । पुरुषार्थसे सब चीजें नहीं मिल सकतीं । कोई कहे कि मेरेको केवल मुक्ति चाहिये और कुछ नहीं चाहिये तो क्या करूँ तो यही उत्तर मिलेगा कि केवल भगवान्‌का भजन करो । सबके लिये एक ही उपाय है‒रात-दिन भगवान्‌का भजन करनाभगवान्‌में ही लगे रहना । जैसेबच्चा केवल माँपर निर्भर रहता है । कोई काम पडे तो वह केवल माँ-माँ पुकारता है । इसके सिवाय वह क्या कर सकता है उसमें और क्या करनेकी ताकत है ? वह माँ-माँ इसलिये करता है कि उसको ‘माँ’ नाम बड़ा मीठाप्यारा लगता है । आदि-शंकराचार्यजी महाराज कितने ऊँचे दार्शनिक सन्त होते हुए भी भगवान् श्रीकृष्णको ‘माँ’ कहते हैं ।

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवान्‌ और उनकी भक्ति’ पुस्तकसे