।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
फाल्गुन शुक्ल दशमी, वि.सं.–२०७०, मंगलवार
एकादशीव्रत कल है
मुक्ति सहज है


(गत ब्लॉगसे आगेका)
यदि आपका अभाव होता तो मेरेको कुछ पता नहीं था’ऐसा कौन कहता ? ऐसी गाढ़ नींद आयी कि मेरेको कुछ पता नहीं रहा तो कुछ पता नहीं’इस बातका तो पता है न जैसेबाहरसे कोई आवाज दे कि अमुक आदमी घरमें है कि नहीं तो भीतरसे एक आदमी कहता है कि वह आदमी घरमें नहीं है । परन्तु ऐसा कहनेवाला भी नहीं है क्याअगर कहनेवाला नहीं है तो वह आदमी घरमें नहीं है’यह कौन कहता ऐसे ही सुषुप्तिमें अगर आप नहीं होते तोमेरेको कुछ भी पता नहीं था’यह कौन कहता जाग्रत् और स्वप्नमें ज्ञान रहता है और सुषुप्तिमें ज्ञान नहीं रहता तो ज्ञानके भाव और अभाव‒दोनोंका ज्ञान आपमें है ।

प्रत्यक्ष प्रमाण है कि आप अवस्थाओंकी गिनती कर लेते हो । जाग्रत्स्वप्न और सुषुप्ति‒इन तीनों अवस्थाओंका आपको ज्ञान हैतभी आप इन तीनोंकी गिनती करते हो । अगर इन तीनोंमें आप नहीं रहतेतीनोंका आपको ज्ञान नहीं रहता तो इनकी गिनती कौन करता अत: बाल्यावस्थासे अभीतक सब अवस्थाओंमें और जाग्रत्स्वप्न तथा सुषुप्ति-अवस्थामें आप रहते होपर ये अवस्थाएँ नहीं रहतीं । जो नहीं रहतावह संसार और शरीर है तथा जो रहता है वह परमात्माका साक्षात् अंश है । मैं अविनाशी हूँ’इसका ज्ञान करानेके लिये ही यह बात कह रहा हूँ । आपके सामने आनेवाली अवस्थाएँ विनाशी हैंपरिस्थितियों विनाशी हैं,घटनाएँ विनाशी हैंदेश-काल और क्रिया विनाशी हैंपरन्तु आप अविनाशी हो और देशकालक्रियावस्तुव्यक्ति आदि सबके भाव-अभावको जानते हो । आप अविनाशी हो और चेतनअमल तथा सहजसुखराशि हो‒
ईस्वर अंस  जीव  अबिनासी ।
चेतन अमल सहज सुखरासी ॥
                                                              (मानस ७ । ११७ । १)

आप चेतन हो । चेतन किसको कहते हैं स्थूलरीतिसे अपनेमें जो प्राण हैंउनके होनेसे चेतन कहते हैं । परन्तु प्राण चेतनका लक्षण नहीं हैक्योंकि प्राण वायु हैजड़ है ।चेतनका लक्षण है‒ज्ञान । आपको जाग्रत् स्वप्न और सुषुप्तिका ज्ञान होता है तो आप चेतन हो । जाग्रत्- अवस्थाको स्वप्न और सुषुप्ति-अवस्थाका ज्ञान नहीं है । स्वप्न-अवस्थाको जाग्रत् और सुषुप्ति-अवस्थाका ज्ञान नहीं है । सुषुप्ति-अवस्थाको जाग्रत् और स्वप्न-अवस्थाका ज्ञान नहीं है । अवस्थाओंको ज्ञान नहीं है । शरीरोंको ज्ञान नहीं हैप्रत्युत आपको ज्ञान है ।अत: आप ज्ञानस्वरूप हुएचेतन हुए ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे