।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी, वि.सं.–२०७०, शुक्रवार
मुक्ति सहज है


(गत ब्लॉगसे आगेका)
आपको कितनी जोरदार भूख लगी हुई हो और सिनेमामें आपका मनचाहा बहुत बढ़ियागरमागरम भोजन दीखता हो तो उसको खानेकी मनमें आती है क्या मुँहमें पानी आ जायगाभोजनकी याद आ जायगीपर उसको खानेका मन करता है क्या आपको प्यास लगी है और परदेपर दीखता है कि ठण्डा जल आ रहा हैगंगाजी बह रही हैपर मन करता है पीनेका नहीं करता कारण क्या है कि उसको महत्त्व नहीं दिया ।

श्रोता‒परन्तु सिनेमामें निश्चय हो जाता है कि यह है नहीं !

स्वामीजी‒अन्नदाता ! यही तो मैंने बताया है कि इन सबके अभावका निश्चय करो । जाग्रत् नहीं हैस्वप्न नहीं है,सुषुप्ति नहीं हैमूर्च्छा नहीं हैसमाधि नहीं है । इनके अभावका अनुभव करोबसयही बात कहनी है । जैसे सिनेमामें अभावका अनुभव होता हैक्योंकि वह प्रत्यक्ष आपके सामने बदलता है और आप नहीं बदलते । यह बात मैंने बहुत बार कही हैसैकड़ों-हजारों बार कही है कि पहले इस शरीर और संसारसे सम्बन्ध नहीं थापीछे इस शरीर और संसारसे सम्बन्ध नहीं रहेगा तथा तीसरी बात यह कि अब सम्बन्ध दीखते हुए भी ये प्रतिक्षण बदल रहे हैं । इनके परिवर्तनका प्रत्यक्ष ज्ञान आपको है । आज दिनतक इतने वर्ष हम जी गये‒ यह बिलकुल गलत है । जी नहीं गयेप्रत्युत मर गये । जन्मनेके बाद ही मरना शुरू हो गया । बालक दो दिनका हुआ तो उसकी उम्रमेंसे दो दिन कम हो गये । प्रत्यक्ष बात है कि ये सब शरीर पहले नहीं थे और पीछे नहीं रहेंगे तथा वर्तमानमें भी नहींमें जा रहे हैं । अत: संसार नहीं’-रूप ही हुआ । नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सत:’ (गीता २ । १६)‒असत्‌की तो सत्ता नहीं है और सत्‌का अभाव नहीं है । आप सत्-रूप हो और असत्-रूप संसारको जाननेवाले हो । संसार जाननेमें आनेवाला है । यह है नहीं । होता तो ठहरता । बाल्यावस्था सच्ची होती तो ठहरतीयुवावस्था सच्ची होती तो ठहरतीवृद्धावस्था सच्ची होती तो ठहरती,धनवत्ता सच्ची होती तो ठहरतीनिर्धनता सच्ची होती तो ठहरती । कोई नहीं ठहरता । इस अनित्यताका आपको प्रत्यक्ष अनुभव है । इसको आदर दोमहत्त्व दो । अब इसमें कठिनता क्या है इसको महत्व नहीं देते होइसलिये भूल जाते हो । आपके सौ रुपये खो जायँ तो क्या भूल जाओगे ? कई बार याद आयेगा कि रुपये चले गये ! पर ज्ञान चला जाय तो इसकी परवाह ही नहीं है । आपको !

श्रोता‒महाराजजी ! पदार्थोंके प्रति राग रहते हुए उनकी सत्ताका अभाव नहीं होता ।

स्वामीजी‒मैं कहता हूँ कि भोजनमें राग रहते हुए भी सिनेमाके भोजनमें सत्ताका अभाव कैसे हुआ ?

श्रोता‒वहीं तो यह जँच गया है कि पदार्थ नहीं है ।

स्वामीजी‒अच्छाये पदार्थ हैं क्या ?

श्रोता‒यह इतना स्पष्ट समझमें नहीं आ रहा है ।

स्वामीजी‒इसका स्पष्टरूपसे अभाव समझनेकी कोशिश ही नहीं की है आपने ! सिनेमामें पहलेसे ही जानते हैं कि ये नहीं हैं । परन्तु यहाँ पहले ही मान लेते हैं कि ये हैं । यहहै’-पना आपका बनाया हुआ हैइसमें तो है नहीं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे