।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण द्वितीया, वि.सं.–२०७०, मंगलवार
वृद्धांगारकपर्व (बुढ़वामंगल)
मुक्तिका सरल उपाय


(गत ब्लॉगसे आगेका)
काला-कलूटाकुरूप बालक होपर उसकी माँसे पूछो कि कैसा है ? क्या वह माँको भी बुरा लगता है ? इसी तरह जीव कैसे ही हैंनरकोंमें हैंस्वर्गमें हैंवैकुण्ठमें हैंपृथ्वीपर हैंपर भगवान्‌के प्यारे हैं‒सब मय प्रिय’ । अत: मनमें ऐसा उत्साह आना चाहिये कि हम भगवान्‌के हैंकैसी मौजकी बात है ! हम अविनाशीचेतनअमल और सहजसुखराशि हैं‒यह बात समझमें आये या न आयेपर इतना तो मान ही सकते हैं कि हम भगवान्‌के हैं । कितने आनन्दकी बात है !
                       त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
                        त्वमेव विद्या  द्रविण त्वमेव   त्वमेव   सर्वं मम   देवदेव ॥

          अपना बालक किसको बुरा लगता है अपनी माता किसको बुरी लगती है हमारी माता भी भगवान् हैं और पिता भी भगवान् हैं । यहाँ हमारा जन्म तो थोड़े वर्षोंसे ही हुआ है और थोड़े वर्ष ही रहनेवाला है । यह जो हाड़-मांसका शरीर है नयह सब बिखर जायगा ! परन्तु हम भगवान्‌के हैं‒यह नहीं बिखरेगा । हम कहीं जायँ, किसी योनिमें जायँ;जहाँ जायँवहाँ भगवान्‌के ही रहेंगे । भगवान् कहते हैं कि मैं नरकोंमें भेजता हूँ अत: यदि हम नरकोंमें जायेंगे तो भगवान्‌के भेजे ही जायेंगे ! जो भगवान्‌को अपना और अपनेको भगवान्‌का मानता हैवह क्या नरकोमें जा सकता है ? जा ही नहीं सकता । अगर चला भी जाय तो क्या हर्ज है ? ठाकुरजीने भेजा हैहर्ज क्या है ! सेठजी (श्रीजयदयालजी गोयन्दका) ने कहा था कि मौका पड़े तो मैं नरकोंमें जाऊँ: क्योंकि यहाँ लोग सांसारिक सुखमें लगे हुए हैं, इसलिये अपनी (सत्संगकी) बात सुनते नहीं । नरकोंमें दुःखी-ही-दुःखी हैंइसलिये वे अपनी बात ज्यादा सुनेंगे । अत: नरकोंमें जाकर सत्संग करायें तो बडा अच्छा है !

महाभारतस्वर्गारोहणपर्वमें आता है कि जब देवदूत युधिष्ठिरको नरकोंके रास्तेपर ले गयेतब नारकीय जीव कहने लगे कि महाराज युधिष्ठिर ! आप ठहरोआपकी हवा लगनेसे हमारेको शान्ति मिलती है । यह सुनकर युधिष्ठिरने कहा कि हम तो यहीं ठहरेंगे । जहाँ हड्डीमांसमलमूत्र आदि बिखरा पडा है और महान् दुर्गन्ध आ रही हैऐसी गन्दी जगह होनेपर भी वे कहते हैं कि हम तो यहीं ठहरेंगेक्योंकि हमारे ठहरनेसे इनको सुख मिल रहा है ! तात्पर्य है कि जो अच्छे पुरुष होते हैंवे अपना सुख नहीं देखते । अपना सुख तो पशु भी देखता है । सूअरकुत्ताऊँटगधा भी अपना सुख देखता है । वही अगर मनुष्य भी देखने लगे तो मनुष्य क्या हुआ ?

भगवान्‌ने मनुष्यको सेवा करनेका अधिकार दिया है । अत: तनसेमनसेवचनसे दूसरोंकी सेवा करो । अपने पासमें जो कुछ हैउसीसे सेवा करो । कोई पूछे तो रास्ता बता दो,प्यारसे उत्तर दे दो । जल पिला दो । हमें तो सबको सुख ही पहुँचाना है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे