।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण पंचमी, वि.सं.–२०७०, शुक्रवार
रंगपंचमी
मुक्तिका सरल उपाय


(गत ब्लॉगसे आगेका)
मैंने पहले ही कह दिया कि भगवान्‌की सृष्टिमें कपूत-सपूत सब तरहके होते हैं । परन्तु जिसको दुःख दिया जा रहा है, उसका बुरा नहीं हो रहा है, प्रत्युत उसका भला हो रहा है ।अपने पापोंका फल भोगकर वह शुद्ध, पवित्र हो रहा है । अतः कोई कहे कि हमारेपर अन्याय हो रहा है तो बिलकुल झूठी बात है । अन्याय होता ही नहीं । भगवान्‌के रहते हुए, भगवान्‌के राज्यमें अन्याय हो सकता है क्या ? नहीं हो सकता ।

        बलिया (बिहार) में  हमारेको एक सज्जन मिले थे । वे ईसाको बड़ा मानते थे । मैंने उनसे कहा कि ईसाई-धर्मकी ऊँची-से-ऊँची जो बात आप बताओगे, उससे बढ़कर बात मैं सनातनधर्ममें बता दूँगा । उन्होंने बताया कि ईसाको क्रासपर चढ़ा दिया तो उन्होंने प्रभुसे प्रार्थना की कि हे नाथ ! इनको सद्बुद्धि दो ! भक्तोंके चरित्रकी एक गुजराती पुस्तक है । उसमें लिखा है कि कुछ चोर चोरी करके भागे । पुलिसको पता लगा तो वह पीछे भागी । चोरोंने देखा कि पीछे पुलिस आ रही है तो उन्होंने जंगलमें बैठे एक बाबाजीके पास सामान रख दिया और जंगलमें छिप गये । बाबाजी आँख बंद किये हुए भजन कर रहे थे । पुलिस वहाँ आयी और चोरीका सामान पड़ा देखकर लगी मारने बाबाजीको कि चोरी करके साधु बना बैठा है ! तब बाबाजीने यह नहीं कहा कि इनको सद्बुद्धि दो । वे बोलेबधू तू जाणे छे’ (બધું તું જાણે છેअर्थात् हे प्रभो ! सब कुछ आप ही जानते हैं ! अभी मैंने कोई कसूर नहीं किया, बैठा-बैठा भजन कर रहा हूँ, फिर भी मार पड़ रही है तो पहले मैंने कोई-न-कोई पाप किया था, जिसका मेरेको पता नहीं है, जो मेरेको याद नहीं है । इस तरह बाबाजीने उनकी दुर्बुद्धि मानी ही नहीं, प्रत्युत इसको भगवान्‌का ही विधान माना ।

नारायण !   नारायण !!   नारायण !!!

‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे

अमृत-बिन्दु-प्रकीर्ण
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संसारमें भगवद्भक्तिके समान मूल्यवान् कोई चीज नहीं है ।

          परिस्थितिको बदलनेका उद्योग निष्फल होता है और उसके सदुपयोगका उद्योग सफल होता है ।

          मनुष्य जितनी अधिक आवश्यकता पैदा करता है, उतना ही वह पराधीन हो जाता है ।

          यह बड़े आश्चर्यकी बात है कि परमात्माकी दी हुई चीज तो अच्छी लगती है, पर परमात्मा अच्छे नहीं लगते !

          लोग हमें अच्छा मानें या न मानें, अच्छा जानें या न जानें, अच्छा कहें या न कहें, पर हमारे भाव अगर अच्छे हैं तो हमारे चित्तमें हर समय प्रसन्नता रहेगी और मरनेपर सद्‌गति होगी ।

          अगर कोई खराब चिन्तन आ जाय तो सावधान हो जायँ कि यदि इस समय मृत्यु हो जाय तो क्या गति होगी  ? अगर सब समय प्रभुका स्मरण होता रहे तो मृत्यु कभी भी आ जाय, कोई चिन्ता नहीं है ।

          व्यक्तिगत जीवन बिगड़नेसे पूरा समाज बिगड़ जाता है और व्यक्तिगत जीवन सुधरनेसे पूरा समाज सुधार जाता है; क्योंकि व्यक्तियोंसे ही समाज बनता है ।

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