।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण षष्ठी, वि.सं.–२०७०, शनिवार
करण-निरपेक्ष परमात्मतत्त्व


श्रोता‒करणनिरपेक्ष साधनकी दृष्टिसे जो कर्तव्य आप सिखाते हैंउसका स्वरूप क्या है ?

स्वामीजी‒आप करण-निरपेक्ष साधनपर जोर मत लगाओप्रत्युत इस बातपर जोर लगाओ कि भगवान्‌की प्राप्तिके लिये जड़ चीज (करण आदि) की सहायताकी आवश्यकता नहीं है । जैसे आपने सुना है कि करण एक है,ऐसे आप जानते हैं कि कारक कितने होते हैं कारक छ: होते हैं‒कर्ताकर्मकरणसम्प्रदानअपादान और अधिकरण । कारक शब्दका अर्थ क्या है ? जिससे क्रियाकी सिद्धि होती हैउसको कारक कहते हैं । कोई भी क्रिया कारकके बिना नहीं होती । अत: व्याकरणमें जहाँ इसका विवेचन हुआ हैवहाँ पहले ऐसा अर्थ किया है कि जो क्रियाका सम्बन्धी होउसको कारक कहते हैं । उसपर विचार करते-करते कहा कि यही कारक नहीं हैक्योंकि उसका क्रियाके साथ सीधा सम्बन्ध नहीं है । परन्तु राज्ञः पुरुष: गच्छति’ राजाका पुरुष जाता है’इसमें राजाका सम्बन्ध पुरुषके साथ और पुरुषका सम्बन्ध गमनरूपी क्रियाके साथ होनेसे राजाका सम्बन्ध परम्परासे क्रियाके साथ हो गया;अत: राजा कारक होना चाहिये ऐसी शंका होनेपर यह निर्णय किया गया कि जो क्रियाको पैदा करनेवाला हो,उसका नाम कारक है‒‘क्रियाजनकत्वं कारकत्वम्

प्रत्येक क्रियाका आरम्भ और अन्त होता है‒यह सबका अनुभव है । जैसे मैंने व्याख्यान आरम्भ किया तो उसकी समाप्ति भी होगी । आप कोई भी काम करोउसका आरम्भ और अन्त जरूर होता है । जिसका आरम्भ और अन्त होता हैवह अनन्तका प्रापक नहीं होता । जो खुद ही उत्पन्न और नष्ट होता हैवह अनन्तकी प्राप्ति करानेवाला कैसे होगा ? वस्तुमात्रव्यक्तिमात्रपरिस्थितिमात्रक्रियामात्र उत्पन्न और नष्ट होनेवाली है । उत्पन्न और नष्ट होनेवाली ही क्रिया होती है तथा उत्पन्न और नष्ट होनेवाले ही पदार्थ होते हैं । ऐसे उत्पन्न और नष्ट होनेवाले जड़के द्वारा अनुत्पन्न चिन्मय तत्त्वकी प्राप्ति नहीं होतीप्रत्युत जड़के त्यागसे चिन्मय तत्त्वकी प्राप्ति होती है । अत: करण-निरपेक्षका अर्थ केवल करणसे रहित ही नहीं हैप्रत्युत कर्ताकर्मकरणसम्प्रदान,अपादान और अधिकरण‒छहों कारकोंसे रहित है । कारकमात्र क्रियाजनक होते हैं और क्रिया उत्पन्न एवं नष्ट होनेवाली होती है । उत्पन्न और नष्ट होनेवाली क्रियासे अनुत्पन्न तत्त्वकी प्राप्ति कैसे होगी अत: परमात्मतत्व कर्ता-निरपेक्ष हैकर्म-निरपेक्ष हैकरण-निरपेक्ष हैसम्प्रदान-निरपेक्ष हैअपादान-निरपेक्ष है और अधिकरण-निरपेक्ष है । तात्पर्य है कि कोई भी कारक परमात्माको पकड़ नहीं सकताक्योंकि सभी कारक उत्पन्न और नष्ट होनेवाले हैं । उत्पन्न और नष्ट होनेवालेके त्यागसे अनुत्पन्न तत्त्वकी प्राप्ति नहीं होगी तो किसकी प्राप्ति होगी जहाँ उत्पन्न और नष्ट होनेवालेसे उपराम हुएअनुत्पन्न तत्त्व प्राप्त हो जायगा ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे