।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण नवमी, वि.सं.–२०७०, मंगलवार
करण-निरपेक्ष परमात्मतत्त्व


(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒महाराजजी ! क्रियाकी सिद्धिमें तो कर्ता भी रहता है ?

स्वामीजी‒हाँ कर्ता भी रहता हैकर्म भी रहता है,करण भी रहता हैसम्प्रदान भी रहता हैअपादान भी रहता है और अधिकरण भी रहता है ।

श्रोता‒फिर यह केवल करण-निरपेक्ष कैसे हुआ ?

स्वामीजी‒करण-निरपेक्ष इसलिये कहा है कि क्रियाकी सिद्धि करणके व्यापारके बाद ही होती है । करणका लक्षण बताया है‒‘साधकतमं करणम्’ (पाणि अ १ । ४ । ४२) । साधक नहींसाधकतर नहींसाधकतम बताया है । क्रियाकी सिद्धिमें जो अत्यन्त उपकारक होता हैउसका नाम करण’ होता है । अत: अत्यन्त उपकारक जो कारक हैवह करण भी जिसकी प्राप्तिमें हेतु नहीं हैफिर दूसरे कारक हेतु कैसे हो जायँगे ? यह तात्पर्य है करणनिरपेक्ष कहनेका !

श्रोता‒इसे यदि कारक-निरपेक्ष कहें तो क्या हर्ज है ?

स्वामीजी‒बिलकुल कारक-निरपेक्ष कह सकते हैं । परन्तु क्रियाकी निष्पत्ति करणके बाद होती है‒‘क्रियाया निष्पत्तिर्यद्‌व्यापारादनन्तरं करणत्वं भवेत् तेन’ । क्रियाके होनेमें सब कारक कारण हैं‒‘क्रियाजनकत्वं कारकत्वम्’पर करणके व्यापारमें क्रियाकी सिद्धि हो ही जाती है । अत: करण-निरपेक्ष कहनेसे कारक-निरपेक्ष हो गया ।

श्रोता‒इसका मतलब यह हुआ कि करणके द्वारा हम जो क्रिया करेंवह सर्वभूतहिते रता:’  होनी चाहिये ?

स्वामीजी‒ध्यान देंपरमात्मा क्रियारूप नहीं हैं । अत: परमात्माकी प्राप्तिमें प्राणिमात्रका हित कारण नहीं है,प्रत्युत प्राणिमात्रके हितका भाव कारण है । अत: अपना भावउद्देश्यलक्ष्य बदल दिया जाय तो सब ठीक हो जायगा । जैसा भावउद्देश्यलक्ष्य होगाउसके अनुसार ही व्यवहार होगा । अत: लक्ष्य केवल दूसरोंके हितका होअपने स्वार्थ और सुखका न हो ।

श्रोता‒रामने बालिको मारनेका पहले निश्चय किया,फिर बाण काममें लिया । यदि बाण काममें नहीं लेते तो केवल निश्चयसे बालि मर जाता क्या ?

स्वामीजी‒क्रियाकी सिद्धिमें ही करणकी अपेक्षा है । परमात्मा क्रियाका विषय है ही नहीं । करण विशेष होनेसे क्रिया विशेष होगीकर्ता कैसे विशेष हो जायगा कलम अच्छी होनेसे लिखना अच्छा होगालेखक कैसे अच्छा हो जायगा ? कल्याण करणका करना है कि कर्ताका करना है मुक्ति करणकी होगी कि कर्ताकी होगी करणके द्वारा कर्ताकी मुक्ति कैसे हो जायगी करणके द्वारा तो क्रिया होगी । क्रियाकी सिद्धिमें करण प्रधान है । अत: करण-निरपेक्ष कहनेसे स्वत: ही कारक-निरपेक्ष हो गया । कारकसे क्रियाकी सिद्धि हो जायगीदुनियाका काम हो जायगापर परमात्मा कैसे प्राप्त होगा ?

श्रोता‒आप कहते हैं कि परमार्थका कार्य करना चाहियेअन्नक्षेत्र खोलना चाहियेप्याऊ लगानी चाहिये तो उनका फल भोगनेके लिये पुन: जन्म लेना पड़ेगा और इस तरह जन्म-मरणसे कभी छुटकारा नहीं होगा !

स्वामीजी‒पारमार्थिक कार्यसे कल्याण नहीं होता । कल्याण निष्कामभावसे होता है । बन्धन कामनासे ही होता है । कामना नहीं होगी तो कल्याण ही होगाऔर क्या होगा ? जन्म-मरणका कारण तो कामना ही है । अत: कामनाका त्याग करना है ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे