।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण एकादशी, वि.सं.–२०७०, गुरुवार
पापमोचनी एकादशीव्रत (सबका)
स्वतःसिद्ध तत्त्व



(गत ब्लॉगसे आगेका)
जैसेपहले हम नहीं जानते थे कि ये गंगाजी हैं । अब जान गये कि ये गंगाजी हैं तो इसमें क्या परिश्रम हुआ जब गंगाजीको नहीं जानते थेतब भी गंगाजी थीं । अब गंगाजीको जान गये तो भी गंगाजी हैं । गंगाजी तो ज्यों-की-त्यों हैं । कभी गहरी नींद आती है तो जगनेपर हम कहाँ हैं’इसका पता ही नहीं चलता । फिर खयाल जाते ही पता चलता है कि हम अमुक जगहमें हैं तो इसमें क्या परिश्रम होता है केवल उधर दृष्टि नहीं थी । इसी तरह यह याद आ जाय कि हम तो परमात्माके हैंहम कर्ता नहीं हैंहम असंग हैं‒‘असङ्गो ह्ययं पुरुष:’ (बृहदारण्यक ४ । ३ । १५) । यह शरीर तथा संसार पहले मेरा था नहींफिर मेरा रहेगा नहीं,अभी मेरा है नहीं‒इस तरफ दृष्टि चली जाय । अब इसमें क्या उद्योग है क्या परिश्रम है ? ये हमारे कुटुम्बी हैं तो ये कितने दिनोंसे हैं और कितने दिनतक रहेंगे ? ये पहले नहीं थेपीछे नहीं रहेंगे और अब भी नहींमें ही जा रहे हैं । प्रत्यक्ष बात है ! व्याख्यान देना आरम्भ किया तो उस समय जितना व्याख्यान देना बाकी थाउतना अब नहीं रहाकम हो गया । ऐसे कम होते-होते वह समाप्त हो जायगा । पहले व्याख्यान नहीं थापीछे व्याख्यान नहीं रहेगा और व्याख्यानके समय भी व्याख्यान नहींमें जा रहा है । इसी तरह जन्मसे पहले शरीर नहीं थाबादमें नहीं रहेगा और अब भी निरन्तर नहींमें जा रहा है । जितनी उम्र आ गयीउतना शरीर छूट गया । अत: संसारका सम्बन्ध हरदम छूट रहा है । संसारसे सम्बन्ध-विच्छेद था और सम्बन्ध-विच्छेद रहेगा तथा अब भी सम्बन्ध-विच्छेद ही हो रहा है ।


श्रोता‒महाराजजी ! परमात्मामें तो क्रिया नहीं है;लेकिन साधन तो करण-सापेक्ष ही होना चाहिये ?

स्वामीजी‒आप करण-सापेक्ष साधन करो तो उसके लिये मैं मना नहीं करता । साधन दो तरहका होता हैएक तो जहाँ हम स्थित हैंवहाँसे ऊँचा उठना होता है और एक जहाँ हमें पहुँचना है वहाँ प्रवेश होता है । ऊँचा उठनेके लिये तो करण-सापेक्ष हैपर प्रवेशमें करण-सापेक्ष नहीं है । जैसे हमें यहाँसे दूसरी जगह जाना हो तो यहाँसे चलना होगापर जहाँ जाना हैवहाँ प्रवेश होनेके बाद क्या चलना होगा ?ऐसे ही जो वास्तविक तत्त्व हैउसको पहलेसे ही देखें तो वह ज्यों-का-त्यों ही हैअत: इसमें करण-सापेक्ष क्या होगा ?केवल भूलको मिटाना हैजो गलती की हैउसका सुधार करना है ।

गलतीको गलती समझते ही गलती मिट जाती है‒यह एक कायदा है । यह सही नहीं है गलत है‒इतना जानते ही गलती मिट जाती है । इसमें उद्योग क्या है जैसे मैंने कहा कि शरीर पहले नहीं था और पीछे नहीं रहेगा तथा अभी जितने दिन शरीर रहाउतने दिन हमारा और शरीरका सम्बन्ध-विच्छेद हुआ है । अब इसमें उद्योग क्या करोगे ? साधन क्या करोगे पहले उधर ख्याल नहीं थायह ख्याल था कि हम तो जी रहे हैं । अब यह ख्याल आ गया कि हम मर रहे हैं । केवल ज्ञानमें ही फर्क पड़ा । सही बात ध्यानमें आ गयी‒यह फर्क पड़ा । इसमें करण-सापेक्ष साधन क्या हुआ सीखना करण-सापेक्ष होगाक्योंकि किसीने सिखायापुस्तक पढ़ीयाद कियातो यह करण-सापेक्ष होगापरन्तु वस्तुस्थितिमें करण-सापेक्ष कैसे होगा ? जो हैउसकी तरफ केवल दृष्टि डालनी है‒
संकर  सहज  सरूपु  सम्हारा ।
लागि समाधि अखंड अपारा ॥
                                                               (मानस १ । ५८ । ४)

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे