।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
चैत्र कृष्ण चतुर्दशी, वि.सं.–२०७०, शनिवार
सत्-असत्‌का विवेक


(गत ब्लॉगसे आगेका)
पाप हो जाता हैअन्याय हो जाता है, झूठ-कपट हो जाता है तो क्या है’ का अभाव हो जाता है ? आप है’ की तरफ देखो । है’ में कोई फर्क पड़ता है क्या जब आप नहीं’को है’ मान लेते होतब बाधा लगती है । नहीं’ को नहीं’ मानो और है’ को है’ मानो । कोई पाप हो गया तो भूल हो गयी बीचमें ! भूलके आधारपर है’ का निषेध क्यों करते हो ?

श्रोता‒‘है’ को मान लियापर प्रत्यक्ष अनुभव हुए बिना यह मान्यता टिकती नहीं है !

स्वामीजी‒देखो भाई ! यह आँखसे नहीं दीखेगा । देखना दो तरहका होता है‒एक आँखसे होता है और एक भीतरमें माननेसे होता है । भीतरसे अनुभव हो जायबुद्धिसे बात जँच जाय‒इसको देखना कहते हैं । यह है’ आँखसे कभी दीखेगा ही नहीं । यह तो माननेमें ही आता है । आपका नामजातिगाँवमोहल्लाघर क्या अभी देखनेमें आ रहे हैं देखनेमें नहीं आ रहे हैं तो क्या ये नहीं हैं ? जो देखनेमें नहीं आतावह होता ही नहीं‒ऐसी बात नहीं है । जो देखनेमें नहीं आतावही होता है । परमात्मा देखनेमें न आनेपर भी हैं । नामजाति आदिके होनेमें कोई शास्त्र आदिका प्रमाण नहीं हैप्रत्युत यह केवल आपकी कल्पना है । परन्तु परमात्माके होनेमें शास्त्रवेदसन्त-महात्मा प्रमाण हैं और उसको माननेका फल भी विलक्षण (कल्याण) है । इसलिये परमात्माको दृढ़तासे मानो ।

गलती तो पैदा होनेवाली और मिटनेवाली हैपर परमात्मा पैदा होनेवाला और मिटनेवाला नहीं है । पैदा होनेवाली वस्तुसे पैदा न होनेवाली वस्तुका निषेध क्यों करते हो ? हमारेसे झूठ-कपट हो गया तो यह परमात्माका होनापन थोड़े ही मिट गया ! परमात्माके होनेमें क्या बाधा लगी यह मानो कि पाप हो गया तो वह भूल हुईपर परमात्मा है‒यह भूल नहीं है । परमात्माको जितनी दृढ़तासे मानोगेउतनी भूलें होनी मिट जायेंगी । जिस समय भूल होती है उस समय आप परमात्मा है’इसको याद नहीं रखते । इसकी याद न रहनेसे ही भूल होती है । जो है’ उससे विमुख हो जाते हैंउसको भूल जाते हैंतब यह भूल होती है । इसलिये अपनेको उससे विमुख होना ही नहीं है । कभी अचानक कोई भूल हो भी जाय तो उस भूलको महत्व मत दो । जो सच्ची चीज हैउसको महत्त्व दो । भूल तो मिट जाती हैपर परमात्मा रहता हैमिटता है ही नहीं । जो हरदम रहता हैउसको मानो । अब बोलोक्या बाधा लगी ?

श्रोता‒वर्षोंसे यह बात सुनते हैंपर फिर भी खालीपन मालूम देता है !

स्वामीजी‒पर खालीपनका ज्ञान आपको है कि नहीं खालीपनका ज्ञान भी खाली है क्या ? आप ज्ञानका तो निरादर करते हैं और खालीपनका आदर करते हैं । ज्ञान तो ठोस हैउसमें खालीपन है ही नहीं । खालीपन (नहीं) को जाननेवाला ठोस (है) ही हुआखाली कैसे हुआ वास्तवमें खालीपन है नहीं । असत्‌की सत्ता माननेसे ही खालीपन दीखता हैक्योंकि असत्‌की सत्ता नहीं है । तात्पर्य है कि आपने असत्‌की सत्ता मान रखी है और असत्‌की प्राप्ति होती नहींतब खालीपन दीखता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे