।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
चैत्र अमावस्या, वि.सं.–२०७०, रविवार
अमावस्या
सत्-असत्‌का विवेक


 (गत ब्लॉगसे आगेका)
दूसरी बातआपने खालीपनकी सत्ता मानी है तो क्या सत्ता खाली होती है ? सत्ता भी खाली नहीं होती और ज्ञान भी खाली नहीं होता । सत्ता (सत्) और ज्ञान (चित्)‒दोनों परमात्माके स्वरूप हैं । अब परमात्मा है‒इसको माननेमें क्या बाधा लगी ? इसको आप रद्‌दी मत करो । इस तरफ आप खयाल नहीं करतेइतनी ही बाधा है । इसका अभाव थोड़े ही हुआ है ? इधर खयाल करना है‒इतना ही काम है आपका ।

परमात्मा ज्यों-का-त्यों है । उसको कोई बनाना नहीं हैपैदा करना नहीं है केवल उधर खयाल करना है कि वह है । उसका हमारे साथ नित्य-सम्बन्ध हैनित्ययोग है । संसारके वियोगका अनुभव होनेपर परमात्माके नित्ययोगका अनुभव हो जायगा । परमात्माका नित्ययोग मानो तो योग’ हो जायगा और संसारका नित्यवियोग मानो तो योग’ हो जायगा । बात एक ही ठहरेगी ! आप इसको महत्त्व नहीं दे रहे हैं । जो आने-जानेवाले हैंउन रुपयों आदिको तो महत्व देते होपर रहनेवालेको महत्व नहीं देते । आने-जानेवालेको अस्वीकार करो और रहनेवालेको स्वीकार करो । अस्वीकार करनेका नाम भी योग’ है और स्वीकार करनेका नाम भीयोग’ है ।

जो चीज आदि और अन्तमें नहीं होतीवह बीचमें भी नहीं होती‒यह सिद्धान्त है । जैसेस्वप्न आया तो उससे पहले स्वप्न नहीं थाबादमें भी स्वप्न नहीं रहाअत: स्वप्नके समय भी नहीं’ ही मुख्य थास्वप्न मुख्य नहीं था । इसलिये नहीं’ निरन्तर रहा । इसी तरह संसार पहले नहीं थापीछे नहीं रहेगा और वर्तमानमें भी निरन्तर नहीं’ में ही जा रहा हैअत: इसमें नहीं’ ही मुख्य है । इसमें बाधा क्या लगी ?

श्रोता‒‘नहीं’ की ममता-आसक्ति नहीं मिटती !

स्वामीजी‒ममता-आसक्ति रहें चाहे न रहेंपरमात्मा तो रहेगा ही । ममताआसक्तिकामना आदि तो आने-जानेवाले हैं और वह रहनेवाला है । रहनेवालेकी तरफ दृष्टि रखो । जो आता है और मिटता है उसकी तरफ दृष्टि मत रखोउसको महत्व मत दो । जो आता हैजाता हैबनता है,बिगड़ता हैपैदा होता हैमिटता हैउसका क्या महत्त्व है ?परमात्मा न आता हैन जाता हैन बनता हैन बिगड़ता है,न पैदा होता है न मिटता है, इसलिये वह है’ । आसक्ति हो जाय तो होने दोकामना हो जाय तो होने दोउसकी परवाह मत करो । है’ को दृढ़ रखो । आसक्ति हो जाय तो उसमें भी वह है । कामना हो जाय तो उसमें भी वह है । कुछ भी हो जाय वह तो ज्यों-का-त्यों ही है । उस है’ की तरफ विशेष ध्यान होगा तो ये ममताआसक्तिकामक्रोध आदि सब मिट जायेंगेरहेंगे नहीं ।  

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘नित्ययोगकी प्राप्ति’ पुस्तकसे