।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
फाल्गुन शुक्ल षष्ठी, वि.सं.–२०७०, शुक्रवार
प्रेमप्रेमी तथा प्रेमास्पद


(गत ब्लॉगसे आगेका)
सुनु   बायस   तैं    सहज   सयाना ।
काहे   न   मागसि   अस  बरदाना ॥
सब सुख   खानि  भगति  तैं  मागी ।
नहिं जय कोउ  तोहि सम बड़भागी ॥
जो मुनि  कोटि  जतन  नहिं  लहहीं ।
जे  जप  जोग   अनल   तन   दहहीं ॥
 रीझेउँ    देखि       तोरि     चतुराई ।
मागेहु  भगति   मोहि   अति  भाई ॥
                                                                (मानसउत्तर ८५ । १‒३)
तात्पर्य है कि भगवान् अपनी ओरसे भक्ति नहीं देते,पर कोई भक्ति ही चाहे तो वे भक्ति देकर बड़े प्रसन्न होते हैं । कारण कि भक्तिसे भगवान् और भक्त‒दोनोंको ही आनन्द मिलता हैइसलिये भगवान् भक्ति चाहनेवालेको भक्ति देकर स्वयं उसके दास बन जाते हैं‒
मैं तो हूँ भगतनको दासभगत मेरे मुकुटमणि
भगवान् दुर्वासाजीसे कहते हैं‒
अहं भक्तपराधीनो ह्यस्वतन्त्र इव द्विज ।
साधुभिर्ग्रस्तहृदयो   भक्तैर्भक्तजनप्रियः ॥
                                                                    (श्रीमद्भा ९ । ४ । ६३)
‘हे द्विज ! मैं सर्वथा भक्तोंके अधीन हूँस्वतन्त्र नहीं । मुझे भक्तजन बहुत प्रिय हैं । उनका मेरे हृदयपर पूर्ण अधिकार है ।’
मयि    निर्बद्धहृदयाः      साधव:   समदर्शना: ।
वशीकुर्वन्ति मां भक्त्या सत्स्त्रियः सत्पतिं यथा ॥
                                                                       (श्रीमद्भा ९ । ४ । ६६)
‘जैसे सती स्त्री अपने पातिव्रत्यसे सदाचारी पतिको वशमें कर लेती हैवैसे ही मेरे साथ अपने हृदयको प्रेम-बन्धनसे बाँध रखनेवाले समदर्शी साधु भक्तिके द्वारा मुझे अपने वशमें कर लेते हैं ।’

भगवान् किसी भी साधनसे वशमें नहीं होतेपर भक्तिसे वे वशमें हो जाते हैं । इसलिये भगवान् कहते हैं‒
न साधयति मां योगो       न सांख्य धर्म उद्धव ।
न स्वाध्यायस्तपस्त्यागो यथा भक्तिर्ममोर्जिता ॥
                                                                (श्रीमद्भा ११ । १४ । २०)
‘हे उद्धव ! योगसांख्य (ज्ञान)धर्मस्वाध्यायतप और त्याग भी मुझे वशमें करनेमें उतने समर्थ नहीं हैंजितनी मेरी अनन्य भक्ति ।’

पराधीन होनेसे जीवको तो स्वतन्त्र होनेमें आनन्द आता हैपर परम स्वतन्त्र होनेसे भगवान्‌को पराधीन होनेमें ही आनन्द आता है ! कारण कि जीवको स्वतन्त्रता दुर्लभ है और भगवान्‌को पराधीनता !  

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)    
‒‘भगवान्‌ और उनकी भक्ति’ पुस्तकसे