।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
चैत्र शुक्ल द्वितीया, वि.सं.–२०७१, मंगलवार
भगवत्प्राप्तिका सुगम
तथा शीघ्र सिद्धिदायक साधन


जो साधन करनेवाले हैं, परमात्मतत्त्वको प्राप्त करना चाहते हैं, ऐसे भाई-बहिनोंके मनमें एक बात रहती है कि कोई ऐसा सीधा-सरल मार्ग बता दे, जिससे हम सुगमतासे और तत्काल परमात्माकी प्राप्ति कर लें । उनके लिये एक विशेष साधन बताया जाता है ।

एक ऐसी स्थिति है, जहाँ पहुँचनेपर मनुष्य कृतकृत्य, ज्ञात-ज्ञातव्य और प्राप्त-प्राप्तव्य हो जाता है अर्थात् उसके लिये कुछ भी करना, जानना और पाना बाकी नहीं रहता, वहाँ पहुँचनेके लिये तीन मार्ग हैं‒ कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग । कर्मयोगसे कृतकृत्यता हो जाती है, ज्ञानयोगसे ज्ञातज्ञातव्यता हो जाती है और भक्तियोगसे प्राप्तप्राप्तव्यता हो जाती है । यह अन्तिम स्थिति है । अगर कोई साधक कमर कस ले कि मेरेको तो उस अन्तिम स्थितिकी तत्काल प्राप्ति करनी है, उसके लिये एक ऐसा साधन बताया जाता है, जिससे वह सब साधनोंसे ऊँचे उठकर उस अन्तिम स्थितिका आरम्भमें ही अनुभव कर सकता है । श्रीमद्भागवतमें भगवान् उद्धवजीसे कहते हैं‒
सर्वं ब्रह्मात्मकं तस्य विद्ययाऽऽत्ममनीषया ।
परिपश्यन्नुपरमेत्        सर्वतो मुक्तसंशयः ॥
अयं हि सर्वकल्पानां   सध्रीचीनो मतो मम ।
मद्धावः सर्वभूतेषु      मनोवाक्कायवृत्तिभिः ॥
                                                                       (११ । २९ । १८-१९)

‘जब सबमें परमात्मबुद्धि की जाती है, तब सब कुछ परमात्मा ही हैं‒ऐसा दीखने लगता है । फिर इस परमात्म-दृष्टिसे भी उपराम होनेपर सम्पूर्ण संशय स्वतः निवृत्त हो जाते हैं ।’

‘मेरी प्राप्तिके जितने साधन हैं, उनमें मैं तो सबसे श्रेष्ठ साधन यही समझता हूँ कि समस्त प्राणियों और पदार्थोंमें मन, वाणी और शरीरकी समस्त वृत्तियोंसे मेरी ही भावना की जाय ।’ *
  
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सब जग ईश्वररूप है’ पुस्तकसे
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      * तात्पर्य है कि मनसे भगवान्‌का ही चिन्तन करे और मनमें जो आये, उसको भगवान्‌का ही स्वरूप समझे । वाणीसे आदरपूर्वक, मीठी और हितकी बात बोले । शरीरसे सबकी सेवा करे, सबको सुख पहुँचाये आदि ।