।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
चैत्र शुक्ल दशमी, वि.सं.–२०७१, गुरुवार
एकादशीव्रत कल है
भगवान् और उनकी दिव्य शक्ति



 (१)
जो सत्त्वरज और तम‒इन तीनों गुणोंसे अलग है,वह भगवान्‌की शुद्ध प्रकृति है । यह शुद्ध प्रकृति भगवान्‌का स्वकीय सच्चिदानन्दघन-स्वरूप है । इसीको संधिनी-शक्ति,संवित्-शक्ति और आह्लादिनी-शक्ति कहते हैं* । इसीको चिन्मयशक्तिकृपाशक्ति आदि नामोंसे कहते हैं । श्रीराधाजीश्रीसीताजी आदि भी यही हैं । भगवान्‌को प्राप्त करानेवाली भक्ति और ब्रह्मविद्या भी यही है ।
प्रकृति भगवान्‌की शक्ति है । जैसेअग्निमें दो शक्तियाँ रहती हैं‒प्रकाशिका और दाहिका । प्रकाशिका-शक्ति अन्धकारको दूर करके प्रकाश कर देती है तथा भय भी मिटाती है । दाहिका-शक्ति जला देती है तथा वस्तुको पकाती एवं ठण्डकको भी दूर करती है । ये दोनों शक्तियाँ अग्निसे भिन्न भी नहीं हैं और अभिन्न भी नहीं हैं । भिन्न इसलिये नहीं हैं कि वे अग्निरूप ही हैं अर्थात् उन्हें अग्निसे अलग नहीं किया जा सकता और अभिन्न इसलिये नहीं हैं कि अग्निके रहते हुए भी मन्त्रऔषध आदिसे अग्निकी दाहिका-शक्ति कुण्ठित की जा सकती है । ऐसे ही भगवान्‌में जो शक्ति रहती हैउसे भगवान्‌से भिन्न और अभिन्न-दोनों ही नहीं कह सकते ।

जैसे दियासलाईमें अग्निकी सत्ता तो सदा रहती हैपर उसकी प्रकाशिका और दाहिका-शक्ति छिपी हुई रहती है, ऐसे ही भगवान् सम्पूर्ण देशकालवस्तुव्यक्ति आदिमें सदा रहते हैंपर उनकी शक्ति छिपी हुई रहती है । उस शक्तिको अधिष्ठित करके अर्थात् अपने वशमें करके उसके द्वारा भगवान् प्रकट होते हैं‒‘प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया’ (गीता ४ । ६) । जैसेजबतक अग्नि अपनी प्रकाशिका और दाहिका-शक्तिको लेकर प्रकट नहीं होतीतबतक सदा रहते हुए भी अग्नि नहीं दीखतीऐसे ही जबतक भगवान् अपनी शक्तिको लेकर प्रकट नहीं होतेतबतक भगवान् सदा सर्वत्र वर्तमान रहते हुए भी नहीं दीखते ।

राधाजीसीताजीरुक्मिणीजी आदि सब भगवान्‌की निजी दिव्य शक्तियाँ हैं और भगवत्सरूपा हैं । भगवान् सामान्यरूपसे सब जगह रहते हुए भी कोई काम नहीं करते । जब करते हैंतब अपनी दिव्य शक्तिको लेकर ही करते हैं । उस दिव्य शक्तिके द्वारा भगवान् विचित्र-विचित्र लीलाएँ करते हैं । उनकी लीलाएँ इतनी विचित्र और अलौकिक होती हैं कि उन्हें सुनकरगाकर और याद करके भी जीव पवित्र होकर अपना उद्धार कर लेते हैं ।
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘कल्याण-पथ’ पुस्तकसे
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         * संधिनी-शक्ति ‘सत्‌’ स्वरूपासंवित्-शक्ति ‘चित्’ स्वरूपा और आह्लादिनी-शक्ति ‘आनन्द’ स्वरूपा है ।

        † अवतारके समय भगवान् अपनी शुद्ध प्रकृतिरूप शक्तियोंसहित अवतरित होते हैं और अवतार-कालमें इन शक्तियोंसे काम लेते हैं । श्रीराधाजी भगवान्‌की शक्ति हैं और उनकी अनुगामिनी अनेक सखियाँ हैंजो सब भक्तिरूपा हैं और भक्ति प्रदान करनेवाली हैं । भक्तिरहित मनुष्य इन्हें नहीं जान सकते । इन्हें भगवान् और राधाजीकी कृपासे ही जान सकते हैं ।