।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
चैत्र शुक्ल पंचमी, वि.सं.–२०७१, शुक्रवार
भगवत्प्राप्तिका सुगम
तथा शीघ्र सिद्धिदायक साधन


(गत ब्लॉगसे आगेका)
लखपति-करोड़पति सब नहीं बन सकतेराजा-महाराजामिनिस्टर सब नहीं बन सकतेपर परमात्माकी प्राप्ति सब कर सकते हैं । भाई हो चाहे बहन होब्राह्मण हो चाहे शूद्र होसाधु हो चाहे गहस्थ होबड़ा हो चाहे छोटा होनीरोग हो चाहे रोगी होविद्वान् हो चाहे अपढ़ होकैसा ही क्यों न होउसके कुलमें परमात्माको प्राप्त करनेकी रीति है अर्थात् वे सब-के-सब परमात्माको प्राप्त कर सकते हैं । बेटा कोई बड़ा होता हैकोई छोटा होता हैकोई पढ़ा-लिखा होता हैकोई अपढ़ होता हैकोई समझदार होता हैकोई बेसमझ होता हैकोई धनी होता हैकोई निर्धन होता है,कोई योग्य होता हैकोई अयोग्य होता हैपर अपनी माँको अपना कहनेका अधिकार सबको समान होता है । इसी तरह भगवान्‌को अपना कहनेका अधिकार सबको समान है । सभी भगवान्‌से कह सकते हैं‒
                          त्वमेव माता च पिता त्वमेव
                           त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
                          त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
                           त्वमेव  सर्वं   मम   देवदेव ॥

इसलिये हम तो योग्य नहीं हैंहम भक्त नहीं हैंहम ज्ञानी नहीं हैंहम योगी नहीं हैंहम अधिकारी नहीं है‒इन बातोंको लेकर हिम्मत नहीं हारनी चाहियेप्रत्युत भगवान्‌से ऐसा कहना चाहिये कि भले ही हम कुछ न होंअंश तो हम आपके ही हैं । हम आपके हैं और आप हमारे हैं‒इसमें दो मत नहीं हैं । इस प्रकार निःसन्देह होकर दृढ़तासे भगवान्‌के भजनमें लग जाना चाहिये ।

अभी फौजमें कोई भरती होना चाहे तो उसकी भलीभाँति जाँच की जाती हैउसकी योग्यतापढ़ाई,अवस्थाकदस्वास्थ्य आदि देखा जाता है । परन्तु भगवान्‌की फौजमें बन्दरभालू आदि भी भरती हो गये,भगवान्‌की फौजमें कोई बन्धन नहीं है कि इतना बड़ा होना चाहियेऐसी योग्यता होनी चाहियेइतना कद होना चाहिये आदि-आदि । भगवान्‌के दरबारमें ध्रुवप्रह्लादजी आदि छोटे-छोटे बालक भी भरती हो गयेजटायु आदि पक्षी भी भरती हो गयेपत्थर बनी हुई अहल्या भी भरती हो गयी,नेत्रहीन सूरदास भी भरती हो गये ! सूरदासजीको एक अँगुली भी नहीं दीखती थीपर वे सूर्यके समान हो गये‒‘सूर सूर तुलसी शशी’ ! भगवान्‌का दरबार सबके लिये सदा खुला है !

भगवत्प्राप्तिकी ऊँची-से-ऊँची और सीधी-सरल बात है‒‘सर्वं ब्रह्मात्मकम्’‘वासुदेवः सर्वम्’ । इस विषयमें यह बात पहले कही जा चुकी है कि हमारी समझमें आये या न आयेदिखायी दे या न देकोई परवाह नहींकेवल निःसन्देह होकर दृढ़तासे यह स्वीकार कर लें कि सब कुछ भगवान् ही हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सब जग ईश्वररूप है’ पुस्तकसे