।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
चैत्र शुक्ल सप्तमी, वि.सं.–२०७१, रविवार
प्रार्थना और शरणागति


भगवान्‌से प्रार्थना करना और उनके शरण होना‒ये दो बातें तत्काल सिद्धि देनेवाली हैं । कोई आफत आ जाय,दुःख आ जायसन्ताप हो जायउलझन हो जाय तो आर्तभावसे ‘हे नाथ ! हे प्रभो !’ कहकर भगवान्‌को पुकारे,उनसे प्रार्थना करे तो तत्काल लाभ होता है । जैसे गजेन्द्रद्रौपदीउत्तरा आदिने विपत्तिके समय भगवान्‌को याद कियाउनको पुकारा तो उनकी तत्काल रक्षा हो गयी । कारण यह है कि जब अपना बल कोई काम नहीं देता, अपनी बुद्धि कुण्ठित हो जाती हैउस समय भगवान्‌की शरण लेनेसे भगवान्‌की कृपा काम करती है । जब गजेन्द्र ग्राहसे अपनेको न छुड़ा सकनेके कारण अपने बलसे और अपने साथियोंसे निराश हो गयातब वह भगवान्‌की शरणमें गया और भगवान्‌ने उसको ग्राहसे मुक्ति दिलायी । चीर-हरणके समय जब द्रौपदी सब तरफसे निराश हो गयीकिसीने भी उसकी प्रार्थना नहीं सुनीतब उसने भगवान्‌को पुकारा और भगवान्‌ने उसकी रक्षा की । जब अश्वत्थामाके द्वारा छोड़ा गया अस्त्र उत्तराके गर्भको नष्ट करनेके लिये आने लगातब उत्तराने सर्वथा भगवान्‌के शरण होकर उनको पुकारा और भगवान्‌ने उसके गर्भकी रक्षा की । जब अर्जुन कर्तव्य-अकर्तव्यका निर्णय न कर सकनेके कारण अपनी बुद्धिसे निराश हो गयेतब वे भगवान्‌की शरणमें गये और भगवान्‌ने संसारका उद्धार करनेवाले गीतोपदेशके द्वारा उनके मोहका नाश कर दिया । भगवान्‌की कृपासे जो काम होता हैवह अपने बल-बुद्धिसे कभी नहीं होता । परन्तु जबतक अपना बल पूरा न लगा देंतबतक भीतरसे असली प्रार्थना नहीं होती । कारण कि अपना बल पूरा लगानेसे जब अपनेमें निर्बलताका अनुभव होने लगता हैतब अपने बलका भरोसा छूट जाता है और अपने बलका भरोसा छूटनेसे ही असली प्रार्थना होती है ।
बुद्धिर्विकुण्ठिता नाथ समाप्ता मम युक्तय: ।

अपनी बुद्धि कुण्ठित हो जायअपुनी युक्तियाँ अपना उद्योग सब फेल हो जायऐसे समयमें असली प्रार्थना होती हैनहीं तो अपने बल आदिके अभिमानका अंश रहनेसे नकली प्रार्थना होती है । नकली प्रार्थनासे काम नहीं होता । जो लोग कहते हैं कि हमने प्रार्थना कीपर कुछ नहीं हुआ तो वास्तवमें उनसे असली प्रार्थना हुई ही नहीं ! प्रार्थना की नहीं जातीप्रत्युत भीतरसे निकलती है अर्थात् स्वतः होती है । अगर भीतरसे असली प्रार्थना हो तो तत्काल काम होता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवान्‌ और उनकी भक्ति’ पुस्तकसे