।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
चैत्र शुक्ल अष्टमी, वि.सं.–२०७१, सोमवार
श्रीदुर्गाष्टमीव्रत
प्रार्थना और शरणागति


(गत ब्लॉगसे आगेका)
जब अपने बलकायोग्यताकापदकाविद्याका,बुद्धिकावर्णकाआश्रमकासम्प्रदायका कोई-न-कोई सहारा रहता हैतब न तो असली प्रार्थना होती है और न असली शरणागति ही होती है । कारण कि अपने बलयोग्यता आदिका सहारा रहनेसे अहम् बना रहता है । जबतक अहम् हैतबतक असली प्रार्थना और असली शरणागति नहीं होती । असली प्रार्थना और असली शरणागतिके बिना काम नहीं होता ।

अपनेमें सर्वथा निर्बलताका अनुभव हो जायतब असली प्रार्थना और असली शरणागति होती है‒‘सुने री मैंने निरबल के बल राम ।’ निर्बलताका अर्थ यह नहीं है कि हमारा शरीर निर्बल हो जायशरीरमें शक्ति न रहेहम बीमार हो जायँ । निर्बलताका अर्थ है‒अपने बलसे निराश हो जानाअपने बलका किंचिन्मात्र भी सहाराभरोसा या अभिमान न होना । बुद्धिबलमनोबलधनबलतनबल,बाहुबलविद्याबल आदि सबसे निराशा हो जाय और भगवत्प्राप्तिकी तीव्र आशा हो जायतब प्रार्थना तत्काल काम करती है । अपने बलकी आशा रहे और भगवत्प्राप्तिसे निराश हो जायँ, तब प्रार्थना काम नहीं करती ।

ऐसा कोई भी असम्भव काम नहीं हैजो भगवान्‌की प्रार्थनासे सम्भव न हो जायकारण कि भगवान्‌का बल अपार हैअसीम हैअनन्त है । भगवान्‌के बलका वर्णन शब्दोंसे कोई भी नहीं कर सकता । हम उनको जितना अपार,असीमअनन्त समझते हैंउससे भी वे बहुत विलक्षण अपार हैंविलक्षण असीम हैंविलक्षण अनन्त हैं । अपारअसीम और अनन्त शब्द तो सापेक्ष हैं अर्थात् पारकी अपेक्षा अपार हैसीमाकी अपेक्षा असीम है अन्तकी अपेक्षा अनन्त हैपर भगवान् निरपेक्ष हैं । उनकी प्रार्थना और शरणागति निर्बल होनेसे होती है‒
                          जब लगि गज बल अपनो बरत्योनेक सरयो नहिं काम ।
                           निरबल ह्वै  बलराम   पुकारयो   आये   आधे   नाम ॥

एक भगवान्‌के सिवाय किसीका आश्रय न रहे‒
एक भरोसो  एक  बल    एक आस बिस्वास ।
एक राम घन स्याम हित चातक तुलसीदास ॥

जबतक बलबुद्धियोग्यतावर्णआश्रम आदिका किञ्चिन्मात्र भी आश्रय हैतबतक अनन्य पुकार नहीं होती । अपने बलबुद्धि आदिका किञ्चिन्मात्र भी आश्रय न हो और ऐसा अनुभव हो कि मैं अपने बलबुद्धियोग्यता आदिसे भगवान्‌को प्राप्त कर ही नहीं सकताअपने दुःखको दूर कर ही नहीं सकतातब भगवान्‌का बल काम करता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवान्‌ और उनकी भक्ति’ पुस्तकसे