।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
वैशाख शुक्ल द्वितीया, वि.सं.–२०७१, गुरुवार
श्रीपरशुराम-जयन्ती
सभी कर्तव्य कर्मोंका नाम यज्ञ है



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
स्वाध्याय अर्थात् वेदोंका अध्ययनस्मृतियोंका पाठ तथा इन सबका मनन-इन्हींको भगवान्‌ने स्वाध्याययज्ञ’ नाम दिया है तथा इनके द्वारा उत्पन्न हुई समझकोइतना ही नहीं,किसी भी बातको गहराईसे समझनेको ज्ञानयज्ञ’ कहा है । भगवान्‌ने यज्ञ’ नामसे इन सबको अभिहित किया है । वे इस यज्ञके प्रकरणका उपसंहार करते हैं चौथे अध्यायके ३२वें श्लोकमें‒
एवं  बहुविधा    यज्ञा    वितता    ब्रह्मणो  मुखे ।
कर्मजान् विद्धि तान् सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे ॥

इस श्लोकमें यज्ञोंको कर्मजन्य बताया गया है । इसके पूर्ववर्ती श्लोकमें श्रीभगवान् कहते हैं‒
यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम् ।

‒जो बात भगवान्‌ने चौथे अध्यायके २३वें श्लोकमें कही थी‒
यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते ।

‒उसीका उपसंहार एक प्रकारसे वे चौथे अध्यायके ३१वें श्लोकमें करते हैं‒यज्ञशिष्ट अमृतका भोजन करनेवाले सनातन ब्रह्मको प्राप्त होते हैं ।’* इसी प्रकार तीसरे अध्यायके १३वें श्लोकमें देखिये‒
यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुचन्ते सर्वकिल्बिषैः ।

 ‘यज्ञशेष भोजन करनेवाले सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त हो जाते हैं ।’ अब देखिये‒सब पापोंसे मुक्त हो जानासम्पूर्ण कर्मोंका लीन हो जाना और यज्ञसे ब्रह्मकी प्राप्ति‒ये तीनों एक ही बात हैसबका तात्पर्य एक ही निकलता है । तीसरे अध्यायके नवें और तेरहवें तथा चौथे अध्यायके तेईसवें और इकतीसवें‒इन चारों श्लोकमें यज्ञका फल बताया गया है‒परमात्म-तत्त्वकी प्राप्तिसम्पूर्ण पापोंका नाश और संसारसे सम्बन्ध-विच्छेद । अतः जितने भी उपाय परमात्माकी प्राप्तिके हैंवे सब-के-सब गीतामें यज्ञ’ नामसे अभिहित हुए हैं‒यह बात उपर्युक्त विवेचनसे सिद्ध हो गयी । बीचमें द्रव्ययज्ञतपोयज्ञयोगयज्ञस्वाध्याययज्ञज्ञानयज्ञ,प्राणायामयज्ञ आदि सभी यज्ञोंकी चर्चा आ गयी । दानतप,होमतीर्थसेवनव्रत‒ये सब-के-सब यज्ञ’ शब्दके अन्तर्गत आ गये‒यह मानना ही पड़ेगा ।

चौथे अध्यायके ३२वें श्लोकमें यह कहकर कि वेदकी वाणीमें बहुत-से यज्ञोंका विस्तारसे वर्णन हुआ है’‒ भगवान्‌ने दहरादिकी उपासनाका भी यज्ञ’ शब्दमें अन्तर्भाव कर दिया,जिनका वर्णन गीतामें नहीं हैअपितु उपनिषद्‌में आया है । भगवान् अर्जुनसे कहते हैं‒

 ‘इन सबको तू कर्मोंसे उत्पन्न जान‒‘कर्मजान् विद्धि’और इस प्रकार जाननेसे तू मुक्त हो जायगा‒‘एवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे ।’

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘जीवनोपयोगी कल्याण-मार्ग’ पुस्तकसे


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       * ‘यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम् ।’