।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
वैशाख शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.–२०७१, मंगलवार
श्रीनृसिंहचतुर्दशी-व्रत
सभी कर्तव्य कर्मोंका नाम यज्ञ है



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
उपर्युक्त चक्रका जो अनुवर्तन नहीं करताइसके अनुसार नहीं चलताउसके लिये भगवान्‌ने तीन विशेषण दिये हैं‒‘अधायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति ।’ अघायु’कहनेका तात्पर्य यह है कि उसकी आयुउसका जीवन निरा पापमय है । गोस्वामी श्रीतुलसीदासजीने भी कहा है‒जीवत जड़ नर परम अभागी’‒वे परम अभागे हैं ।  ‘जीवत सव सम चौदह प्रानी’‒वे जीते ही मुर्देके समान हैं जो भगवान्‌की दिशामें नहीं चलते । उनकी आयु अघरूप है । कहा है‒
पर निंदा पर द्रोह रत पर धन पर अपबाद ।
ते  नर  पाँवर  पापमय देह  धरे  मनुजाद ॥
                                                                            (मानस ७ । ३१)

ऐसे लोग नररूपमें राक्षस हैं । मनुष्यको खा जाय वह राक्षस । उनके लिये दूसरा विशेषण दिया है‒‘इन्द्रियाराम’ केवल इन्द्रियोंको सुख पहुँचाना‒भोग भोगनासुस्वादु भोजन खानासुन्दर दृश्य देखनाकोमल वस्तुओंका स्पर्श करनाआलस्यसे सोना‒यही है‒इन्द्रियारामता । तीसरी बात कहते हैं‒‘मोघं पार्थ स जीवति’ वह संसारमें व्यर्थ ही जीता है । यह हुई सभ्यताकी भाषा । तात्पर्य है कि वह मर जाय तो अच्छा । उसका न जीना ही अच्छा है ।श्रीगोस्वामीजीने कह दिया‒कुंभकरन सम सोवत नीके’ यह तो सोया रहे तभी अच्छा । अभिप्राय यह कि ऐसे लोग पृथ्वीपर भाररूप ही हैं । पृथ्वीने कहा‒‘मुझे भार वनस्पतिका नहीं हैपहाड़ोंका नहीं हैमुझपर भार तो उसका हैजो भगवद्धक्तिसे हीन है, उसका मुझपर सदा भार है ।’‒‘भगवद्भक्तिहीनो यस्तस्य भारः सदा मम ।’ उपर्युक्त सृष्टिचक्रका जो अनुवर्तन नहीं करताभगवान् कहते हैं‒उसका जीवन भाररूप है । सृष्टिचक्रका अनुवर्तन क्या है‒यह ऊपर बता ही दिया गया । निष्कामभावसे या भगवान्‌की पूजाके भावसे अपने कर्तव्यका तत्परतासे पालन करना ही सृष्टिचक्रका अनुवर्तन है । जिसकाजहाँ जो कर्तव्य-कर्म है,वह उस कर्मको करे । साथमें कर्तृत्वाभिमान न होममता न होआसक्ति न होकामना न होपक्षपात न होविषमता न हो‒ये सब विषरूप हैं । सिंगीमोरासंखियाकुचिला,भिलावा आदि जो जहर हैंउन्हें भी वैद्यलोग शुद्ध करके औषधरूपमें प्रयोग करते हैंतब उनसे रोग दूर होते हैं । उनका जहर यदि बना रहे तो उससे मनुष्य मर जाता है । आसक्तिकामनापक्षपातविषमताअभिमानस्वार्थ आदि सब कर्मोंमें जहररूप हैं । इस जहरके भागको निकाल देनेसे हमारे कर्म महान् अमृतमय होकर जन्म-मरणको मिटा देनेवाले बन जायेंगे । कैसी बढ़िया बात है ! गीता हमें यही सिखाती है !

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘जीवनोपयोगी कल्याण-मार्ग’ पुस्तकसे