।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण द्वितीयावि.सं.२०७१शुक्रवार
भगवान्‌ विवस्वान्‌को उपदिष्ट कर्मयोग



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
  भगवान्‌ने सर्वसाक्षी सूर्यको सृष्टिके प्रारम्भमें अनादि कर्मयोगका उपदेश इसलिये दिया था कि जैसे सूर्यके प्रकाशमें अनेक कर्म होते हैंकिन्तु वे उन कर्मोंसे बँधते नहींवैसे ही चेतनकी साक्षीमें सम्पूर्ण कर्म होनेसे वे (कर्म) बन्धनकारक नहीं होते । हाँउनसे यदि सुखका थोड़ा-सा भी सम्बन्ध होगा तो वे अवश्य ही बन्धनकारक हो जायँगे । जैसे सूर्यमें कर्मोंका भोक्तापन नहीं हैवैसे ही कर्तापन भी नहीं है । साथ-ही-साथ नियत कर्मका किसी भी अवस्थामें त्याग न करना तथा नियत समयपर कार्यके लिये तत्पर रहना भी सूर्यकी अपनी विलक्षणता है । कर्मयोगीको भी इसी प्रकार अपने नियत कर्मोंको नियत समयपर करनेके लिये तत्पर रहना चाहिये ।इसलिये कर्मयोगका वास्तविक अधिकारी सूर्यको जानकर ही भगवान्‌ने उनको सर्वप्रथम कर्मयोगका उपदेश दिया था और उसकी परम्पराका उल्लेख करते हुए इसके विषयको उत्तम रहस्य कहा है
इमं विवस्वते योगं      प्रोक्तवानहमव्ययम् ।
विवस्वान्मनवे* प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् ॥
एवं परम्पराप्राप्तमिमं        राजर्षयो विदुः ।
स कालेनेह महता       योगो नष्टः परन्तप ॥
स एवायं मया तेऽद्य  योग: प्रोक्त: पुरातन: ।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् ॥
                                                                           (गीता ४ । १-३)

मैंने इस अविनाशी योगको विवस्वान् (सूर्य) से कहा था । सूर्यने अपने पुत्र वैवस्वत मनुसे कहा और मनुने अपने पुत्र राजा इक्ष्याकुसे कहा । हे परंतप अर्जुन ! इस प्रकार परम्परासे प्राप्त इस योगको राजर्षियोंने जानाकिंतु उसके बाद वह योग बहुत कालसे इस पृथ्वीलोकमें लुप्तप्राय हो गया । तू मेरा भक्त और प्रिय सखा हैइसलिये वही यह पुरातन योग आज मैंने तुझे कहा हैक्योंकि यह बड़ा ही उत्तम रहस्य है ।

सृष्टिमें जो सर्वप्रथम उत्पन्न होता हैउसे ही कर्तव्यका उपदेश दिया जाता है । उपदेश देनेका तात्पर्य हैकर्तव्यका ज्ञान कराना । सृष्टिकालमें सर्वप्रथम सूर्यकी उत्पत्ति हुईफिर सूर्यसे समस्त लोक उत्पन्न हुए । हमारे शास्त्रोंमें सूर्यकोसविता कहा गया है जिसका अर्थ हैउत्पन्न करनेवाला ।

पाश्चात्त्य विज्ञान भी सूर्यको सम्पूर्ण सृष्टिका कारण मानता है । सबको उत्पन्न करनेवाले सूर्यको सर्वप्रथम कर्मयोगका उपदेश देनेका अभिप्राय उनसे उत्पन्न सम्पूर्ण सृष्टिको परम्परासे कर्मयोग सुलभ करा देना था ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘कल्याण-पथ’ पुस्तकसे
________________________
       * विशेषेण वस्ते आच्छादयति इति विवस्वान् । विपूर्वक वस्घातुसे क्विप्मतुप् आदि प्रक्रियासे यह शब्द सिद्ध होता है ।