।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्थीवि.सं.२०७१रविवार
भगवान्‌ विवस्वान्‌को उपदिष्ट कर्मयोग



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
  श्रेष्ठ पुरुष जैसा आचरण करता हैअन्य लोग भी वैसा ही आचरण करने लगते हैं । अतएव राजा जैसा आचरण करता है प्रजा भी वैसा ही आचरण करने लगती हैयथा राजा तथा प्रजा । राजाको भगवान्‌की विभूति कहा गया हैनराणां च नराधिपम् (गीता १० । ३७) । राजाओंमें सर्वप्रथम सूर्यका स्थान हुआ । सूर्य तथा भविष्यमें होनेवाले अन्य राजाओंने उस कर्मयोगका आचरण किया । वे राजालोग राज्यके भोगोंमें आसक्त हुए बिना सुचारुरूपसे राज्यका संचालन करते थे । प्रजाके हितमें उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति रहती थी । कर्मयोगका पालन करनेके कारण राजाओंमें इतना विलक्षण ज्ञान होता था कि बड़े-बड़े ऋषि भी ज्ञान प्राप्त करनेके लिये उनके पास जाया करते थे । श्रीवेदव्यासजीके पुत्र शुकदेवजी भी ज्ञानप्राप्तिके लिये राजर्षि जनकके पास गये थे । छान्दोग्योपनिषद्‌के पाँचवें अध्यायमें भी आता है कि ब्रह्मविद्या सीखनेके लिये छः ऋषि एक साथ महाराज अश्वपतिके पास गये थे ।

शंकाजिसे ज्ञान नहीं होताउसीको उपदेश दिया जाता है । सूर्य तो स्वयं ज्ञानस्वरूप भगवान् ही हैंफिर उन्हें उपदेश देनेकी क्या आवश्यकता थी ?

समाधानजिस प्रकार अर्जुन महान् ज्ञानी नरऋषिके अवतार थेपरंतु लोकसंग्रहके लिये उन्हें भी उपदेश देनेकी आवश्यकता हुई । ठीक उसी प्रकार भगवान्‌ने सूर्यको उपदेश दियाजिसके फलस्वरूप संसारका महान् उपकार हुआ और हो रहा है ।

वास्तवमें नारायणके रूपमें उपदेश देना और सूर्यके रूपमें उपदेश ग्रहण करना जगन्नाट्‌यसूत्रधार भगवान्‌की एक लीला ही समझनी चाहियेजो कि संसारके हितके लिये बहुत आवश्यक थी ।

नारायण !     नारायण !!     नारायण !!!

‒‘कल्याण-पथ’ पुस्तकसे
अमृत-बिन्दु

अगर मनुष्य अपने विवेकका अनादर करता है तो उसका विवेक लुप्त हो जाता है और वह अपने विवेकका आदर करता है तो उसका विवेक इतना बढ़ता है कि शास्त्र तथा गुरुके बिना भी उसको परमात्मतक पहुँचा देता है ।

          जब हम सबकी बात नहीं मानते, तो फिर दूसरा कोई हमारी बात न माने तो हमें नाराज नहीं होना चाहिये ।

          भीतरमें लोभ न हो तो आवश्यक वस्तु अपने-आप प्राप्त होती है; क्योंकि वस्तुका लोभ ही वस्तुकी प्राप्तिमें बाधक है ।

          किसी भी व्यक्तिका निरादर नहीं करना चाहिये । निरादर करनेसे वास्तवमें अपना ही निरादर होता है; क्योंकि सब जगत्‌ ईश्वररूप है ।

          भारतवर्षमें जन्म लेकर भी मनुष्य भगवान्‌में न लगे‒यह बड़े आश्चर्य और दुःखकी बात है ! क्योंकि भारतवर्षमें जन्म मुक्त होनेके लिये ही होता है । इसलिये देवता भी भारतवर्षमें जन्म चाहते हैं ।

‒ ‘अमृत-बिन्दु’ पुस्तकसे