।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण पंचमीवि.सं.२०७१सोमवार
राग-द्वेषका त्याग



प्रकृति और पुरुष‒ये दो हैं । इन दोनोंके अंशसे बना हुआ यह जीवात्मा है । अब इसका मुख जबतक प्रकृतिकी तरफ रहेगातबतक इसको शान्ति नहीं मिल सकतीऔर यह परमात्माके सम्मुख हो जायगा तो अशान्ति टिकेगी नहीं‒यह पक्की बात है ।

संयोग-वियोग प्रकृतिकी चीज है । हमें जो कुछ मिलाहैवह सब प्रकृतिका हैउत्पन्न होकर होनेवाला है । परन्तु परमात्मा आने-जानेवालेमिलने-बिछुड़नेवाले नहीं हैं । परमात्मा सदा मिले हुए रहते हैंकिन्तु प्रकृति कभी मिली हुई नहीं रहती । आपको यह बात अलौकिक लगेगी कि संसार आजतक किसीको भी नहीं मिला है और परमात्मा कभी भी वियुक्त नहीं हुए हैं । संसार मेरे साथ हैशरीर मेरे साथ हैइन्द्रियाँ-मन-बुद्धि मेरे साथ हैं और परमात्मा न जाने कहाँ हैंपता नहीं‒यह विस्मृति हैमूर्खता है ।

जो कभी हों और कभी न होंकहीं हों और कहीं न हों,किसीके हों और किसीके न होंवे परमात्मा हो ही नहीं सकते । सर्वसमर्थ परमात्मामें यह सामर्थ्य नहीं है कि वे किसी समयमें हों और किसी समयमें न होंकिसी देशमें हों और किसी देशमें न होंकिसी वेशमें हों और किसी वेशमें न हों,किसी सम्प्रदायके हों और किसी सम्प्रदायके न होंकिसी व्यक्तिके हों और किसी व्यक्तिके न होंकिसी वर्ण-आश्रमके हों और किसी वर्ण-आश्रमके न हों । भगवान् तो प्राणिमात्रमें समान रहते हैं‒
मया   ततमिदं    सर्वं     जगदव्यक्तमूर्तिना ।
                                                                              (गीता ९ । ४)

समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।
                                                                             (गीता ९ । २९)

आपके देखने-सुननेमें जितना जगत् आता हैउस सबमें वे परमात्मा परिपूर्ण हैं‒
भूमा अचल शाश्वत अमल सम ठोस है तू सर्वदा ।
यह देह है पोला घड़ा  बनता  बिगड़ता  है सदा ॥

परमात्मा व्यापक हैंअचल हैंठोस हैं सर्वत्र ठसाठस भरे हुए हैंपरन्तु यह शरीर बिलकुल पोला हैइसमें कोरी पोल-ही-पोल है ! वहम होता है कि इतना मान मिल गया,इतना आदर मिल गयाइतना भोग मिल गयाइतना सुख मिल गया ! वास्तवमें मिला कुछ नहीं है । केवल वहम है,धोखा-है-धोखा ! कुछ नहीं रहेगा । क्या यह शरीर रहनेवाला है अनुकूलता रहनेवाली है सुख रहनेवाला है मान रहनेवाला है ? बड़ाई रहनेवाली है ? इनमें कोई रहनेवाली चीज है क्या संसार नाम ही बहनेवालेका है । जो निरन्तर बहता रहेउसका नाम ‘संसार’ है । यह हरदम बदलता ही रहता है‒‘गच्छतीति जगत् ।’ कभी एक क्षण भी स्थिर नहीं रहता । परन्तु परमात्मा एक क्षण भी कहीं जाते नहींजायें कहाँ कोई खाली जगह हो तो जायें ! जहाँ जायँ, वहाँ पहलेसे ही परमात्मा भरे हुए हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे