।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठीवि.सं.२०७१मंगलवार
राग-द्वेषका त्याग



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
भगवान् सबके हैं और सबमें हैंपर मनुष्य उनसे विमुख हो गया है । संसार रात-दिन नष्ट होता जा रहा है,फिर भी वह उसको अपना मानता है और समझता है कि मेरेको संसार मिल गया । भगवान् कभी बिछुड़ते हैं ही नहीं,पर उनके लिये कहता है कि वे हैं ही नहींमिलते हैं ही नहीं;भगवान्‌से मिलना तो बहुत कठिन हैपर भगवान् तो सदा मिले हुए ही रहते हैं । भाई ! आप अपनी दृष्टि उधर डालते ही नहींउधर देखते ही नहीं । जहाँ-जहाँ आप देखते हो,वहाँ-वहाँ भगवान् मौजूद हैं । अगर यह बात स्वीकार कर लोमान लो कि सब देशमेंसब कालमेंसब वस्तुओंमें,सम्पूर्ण घटनाओंमेंसम्पूर्ण परिस्थितियोंमेंसम्पूर्ण क्रियाओंमें भगवान् हैंतो भगवान् दीखने लग जायेंगे ।दृढ़तासे मानोगे तो दीखेंगेसंदेह होगा तो नहीं दीखेंगे । जितना मानोगेउतना लाभ जरूर होगा । दृढ़तासे मान लो तो छिप ही नहीं सकते भगवान् ! क्योंकि‒
यो मां पश्यति सर्वत्र  सर्वं च मयि पश्यति ।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥
                                                                             (गीता ६ । ३०)

‘जो सबमें मेरेको देखता है और सबको मेरे अन्तर्गत देखता हैमैं उसके लिये अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता ।’

जहाँ देखेंजब देखेंजिस देशमें देखेंवहीं भगवान् हैं । परन्तु जहाँ राग-द्वेष होंगेवहाँ भगवान् नहीं दीखेंगे ।भगवान्‌के दीखनेमें राग-द्वेष ही बाधक हैं । जहाँ अनुकूलता मान लेंगेवहाँ राग हो जायगा और जहाँ प्रतिकूलता मान लेंगेवहाँ द्वेष हो जायगा । एक आदमीकी दो बेटियों थीं । दोनों बेटियाँ पास-पास गाँवमें ब्याही गयी थीं । एक बेटीवालोंका खेतीका काम था और एकका कुम्हारका काम था । वह आदमी उस बेटीके यहाँ गयाजो खेतीका काम करती थी और उससे पूछा कि क्या ढंग है बेटी उसने कहा‒पिताजी ! अगर पाँच-सात दिनोंमें वर्षा नहीं हुई तो खेती सूख जायगीकुछ नहीं होगा । अब वह दूसरी बेटीके यहाँ गया और उससे पूछा कि क्या ढंग है ? तो वह बोली‒पिताजी ! अगर पाँच-सात दिनोंमें वर्षा आ गयी तो कुछ नहीं होगाक्योंकि मिट्टीके घड़े धूपमें रखे हैं और कच्चे घड़ोंपर यदि वर्षा हो जायगी तो सब मिट्टी हो जायगी ! अब आपलोग बतायें कि भगवान् वर्षा करें या न करें ! दोनों एक आदमीकी बेटियों हैं । माता-पिता सदा बेटीका भला चाहते हैं । अब करें क्या एकने वर्षा होना अनुकूल मान लिया और एकने वर्षा होना प्रतिकूल मान लिया । एकने वर्षा न होना अनुकूल मान लिया और एकने वर्षा न होना प्रतिकूल मान लिया । उन्होंने वर्षा होनेको ठीक-बेठीक मान लिया । परन्तु वर्षा न ठीक है न बेठीक है । वर्षा होनेवाली होगी तो होगी ही । अगर कोई वर्षा होनेको ठीक मानता है तो उसका वर्षामें ‘राग’ हो गया और वर्षा होनेको ठीक नहीं मानता तो उसका वर्षामें ‘द्वेष’ हो गया । ऐसे ही यह संसार तो एक-सा हैपर इसमें ठीक और बेठीक‒ये दो मान्यताएँ कर लीं तो फँस गये !

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे