।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण नवमीवि.सं.२०७१शुक्रवार
एकादशी-व्रत कल है
राग-द्वेषका त्याग



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
अच्छा और बुरा लगता हैठीक और बेठीक लगता है‒यह राग-द्वेष है । इसके वशमें न होना क्या है इसको तमाशेकी तरह देखे कि क्या अच्छा है और क्या मन्दा है ! न सुख रहनेवाला हैन दुःख रहनेवाला है । न बीमारी रहनेवाली हैन स्वस्थता रहनेवाली है । कुछ भी रहनेवाला नहीं है । इन सबका वियोग होनेवाला है । बहुत दिनोंतक संयोग रहनेपर भी एक दिन वियोग जरूर होगा‒‘अवश्यं यातारश्चिरतरमुषित्वाऽपि विषयाः ।’ अतः सज्जनो ! इस बातको पहलेसे ही समझ लो कि एक दिन इन सबका वियोग होगा । लड़का जन्मेतभी यह समझ लेना चाहिये कि यह मरेगा जरूर ! यह बड़ा होगा कि नहीं होगापढ़ेगा कि नहीं पढ़ेगाइसका विवाह होगा कि नहीं होगाइसके लड़का-लड़की होंगे कि नहींइसमें सन्देह हैपरन्तु यह मरेगा कि नहीं मरेगा‒इसमें कोई सन्देह है क्या जन्म हुआ है तो खास काम मरना ही हैऔर कोई खास काम नहीं है । अब इसमें राजी और नाराज क्या हों । अपने तो मौजसे भगवान्‌की तरफ चलते रहें । जो वैराग्यवान् होते हैंविवेकी होते हैं,भगवान्‌के प्रेमी भक्त होते हैंवे इन आने-जानेवाले पदार्थोंकी तरफ दृष्टि रखते ही नहीं । वे करनेमें सावधान और होनेमें सदा प्रसन्न रहते हैं ।
रज्जब रोवे कौन कोहँसे सो कौन विचार ।
गये सो आवन के नहीं   रहे सो जावनहार ॥

सब जानेवाला हैमरनेवाला है तो क्या हँसें ! जो मर चुकेउनको कितना ही रोयेंवे आनेके हैं नहीं तो क्या रोयें ! यह विचार स्थायी कर लो । फिर राग-द्वेष मिट जायँगे ।

राग-द्वेषको सह लो अर्थात् प्रियकी प्राप्ति होनेपर हर्षित न हों और अप्रियकी प्राप्ति होनेपर उद्विग्न न हों । फिर आप जन्म-मरणसे रहित हो जाओगे । सन्तोंने कहा है‒‘अब हम अमर भये न मरेंगे ।’ अब क्यों मरेंगे ? मरनेवाले तो ये राग-द्वेष ही हैं । इन दोनोंको नाशवान् और पतन करनेवाले समझो । चाहे तो ऐसा समझकर इनसे अलग हो जाओनहीं तो भगवान्‌को पुकारो कि ‘हे नाथ ! हे नाथ !! रक्षा करो !’जैसेमोटर खराब हो जाय तो खुद ठीक कर लो । खुद ठीक न कर सको तो कारखानेमें भेज दो ! ऐसे ही राग-द्वेषसे अलग न हो सको तो भगवान्‌की शरणमें चले जाओ । भगवान्‌ने गीताके अन्तमें कहा कि ‘तू मेरी शरणमें आ जा’‘मामेकं शरणं व्रज’ (गीता १८ । ६६) ।

एक ब्राह्मण देवताकी कन्या बड़ी हो गयी । उसने एक धर्मात्मा सेठके पास जाकर कहा‒‘सेठजी ! कन्या बड़ी हो गयीक्या करूँ ?’ सेठने कहा‒‘आप वर ढूँढ़ोतैयारी करो,चिन्ता क्यों करते हो ? इसका अर्थ यह नहीं है कि सेठ ही आकर वर ढूँढ़ेंगेविवाह करायेंगेप्रत्युत इसका अर्थ है कि चिन्ता मत करोधन हम दे देंगेकाम तुम करो । इसी तरह भगवान् कहते हैं कि ‘तुम अपना काम करोचिन्ता मत करो । तुम्हें जो अभाव होगाउसे मैं पूरा करूँगा ।’

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे