।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण एकादशीवि.सं.२०७१शनिवार
अचला एकादशी-व्रत (सबका)
राग-द्वेषका त्याग



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
भगवान्‌ने आपको जो काम दिया हैउसको ठीक तरहसे करो । अर्जुनने भी यही कहा‒‘करिष्ये वचनं तव’(गीता १८ । ७३) ‘अब मैं आपकी आज्ञाका पालन करूँगा ।’भगवान्‌का काम है, भगवान्‌का ही घर है, भगवान्‌का ही सब द्रव्य हैभगवान्‌का ही सब परिवार है ! अतः भगवान्‌का काम उत्साहसे करोअच्छी तरहसे करो । होनेकी चिन्ता मत करोक्योंकि होना आपके अधीन है ही नहीं । आलस्य-प्रमाद मत करो । निरर्थक समय बरबाद मत करो । उत्तम-से-उत्तम बर्ताव करो । क्या होगाक्या नहीं होगा‒इसको भगवान्‌पर छोड़ दो कि तू जानेतेरा काम जाने ।

जो भाई-बहन जहाँ हैंवहीं सुचारुरूपसेमर्यादासे,उत्साहसे अपने कर्तव्यका पालन करें और चिन्ता न करें ।
चिन्ता दीनदयालकोमो मन सदा आनन्द ।
जायो सो प्रतिपालसी,   रामदास गोबिन्द ॥

चिन्ता हम क्यों करें ! जो मालिक हैवह चिन्ता करे । हम तो अपनी जिम्मेवारीका काम ठीक तरहसे करेंगे । अच्छा-मन्दा मानना हमारा काम नहीं है ।

जो पदार्थसामग्री मिली हैउसके द्वारा उदारतापूर्वक सबकी सेवा करोहित करो । संसारकी चीजोंको अपनी मत मानो । कोई भूखा आ जाय तो उसको भोजन दे दो । नंगा आ जाय तो उसको कपडा दे दो । वह कहे कि ‘सब मेरेको दे दो’ तो उससे कह दो कि ‘सब तेरेको कैसे दे दें मैं भी निर्वाह करता हूँतू भी निर्वाह कर ले भाई ! न धन तू साथमें लाया है न मैं लाया हूँ ।’ रामजीने भेजा है तो सबका उपकार करना है । नहीं भेजा है तो जै रामजीकी ! अपने क्या हर्ज है ! ये जो चमगादड़ होते हैं नजो वृक्षोंपर लटके रहते हैंउनके यहाँ कोई मेहमान आ जाय तो वे उसका क्या आदर करते हैं कि हम भी लटकते हैंआप भी लटको ! ऋषिकेशमें सत्संग करते थे । वहाँ कोई सन्त आता तो कहते कि पधारो महाराज ! विराजो । हम भी भिक्षा माँगकर खाते हैंआप भी भिक्षा माँगो और खाओ !

        राग-द्वेष न करें । जो मिलेउसमें सन्तुष्ट रहें‒‘जथा लाभ संतोष सदाई’ (मानस ७ । ४६ । १) । भगवान् जो सुख-दुःख भेजेंउसमें ही राजी रहें । जो मालिकके कहनेमें चलता हैमालिक उसके वशमें हो जाता है । ठाकुरजी जो परिस्थिति भेजेंउसीमें राजी रहें तो ठाकुरजी वशमें हो जायेंगे ! थोड़ी-सी सावधानी रखें कि जो बदलता रहता है,उसमें क्या राजी और क्या नाराज हों ! ‘पुनः प्रभात पुनरेव शर्वरी पुनः शशांक पुनरुद्यतो रविः ।’ कभी सबेरा होता है,कभी साँझ होती हैकभी रात होती हैकभी दिन होता है‒यह तो होता ही रहता हैबदलता ही रहता है । संसारके पदार्थ आते-जाते रहते हैं । परन्तु आप और भगवान् वे-के-वे ही रहते हैं । आपका और भगवान्‌का साथ है । शरीरका और संसारका साथ है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे