।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशीवि.सं.२०७१मंगलवार
सत्संगकी आवश्यकता



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
एक ही ध्येयलक्ष्य हो कि हमें पारमार्थिक उन्नति ही करना है । मेरी तो यहाँतक धारणा है कि यदि हृदयमें सत्संगकी जोरदार इच्छा होगी तो उसको सत्संगमें गये बिना लाभ हो जायगादूर बैठे ही उसके मनमें उस सत्संगके भाव पैदा हो जायँगे ! भगवान् तो भावको ग्रहण करते हैं‒‘भावग्राही जनार्दनः ।’

भगवान् हमारे सदाके माँ बापपतिगुरुआचार्य हैं,अतः उनकी आज्ञामें चलो । कर्तव्य-अकर्तव्यकी व्यवस्थामें शास्त्र प्रमाण है‒‘तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ’ (गीता १६ । २४) । शास्त्रकी आज्ञा है कि सत्संग, भजनध्यान करो । इसलिये कभी मत डरो,निधड़क रहो । पतिकी सेवा करो उत्साहपूर्वक । जैसेकोई मुनीम या नौकर हैपर उसका मालिक उसको भजन-ध्यानके लिये मना करता है तो उसको मालिकसे कड़वा नहीं बोलना चाहियेपर मनमें यह विचार पक्का रखना चाहिये कि मैंने इसको समय दिया है और समयके मैं पैसे लेता हूँपर मैंने अपना धर्म नहीं बेचा है । यदि वह कहे कि झूठी बही लिखनी पड़ेगीझूठ-कपट करना पड़ेगासेल्स टैक्स और इन्कम टैक्सकी चोरी करनी पड़ेगीनहीं तो मैं नौकर नहीं रखूँगा तो उसको यह बात मनमें रखनी चाहिये कि अच्छी बात है । वह हमें छोड़ दे तो ठीक हैपर अपने मत छोड़ो ।यदि मालिक ऐसे नौकरका त्याग करेगा तो ऐसा ईमानदार नौकर उसको फिर नहीं मिलेगा । जो आदमी मालिकके कहनेपर सरकारकी चोरी नहीं करतावह मालिककी भी चोरी नहीं करेगा । उसको मालिक छोड़ देगा तो पीछे वह रोयेगा ही । अपने तो निधड़कनिःशंक रहो कि हमने तो कोई पाप नहीं किया । हम पापअन्याय नहीं करते तो कुटुम्बीसम्बन्धी भले ही नाराज हो जाये उस नाराजगीसे बिलकुल मत डरो । मीराँबाईने कहा है‒‘या बदनामी लागे मीठी !’ वे भगवान्‌की पक्की भक्त थीं । उन्होंने कलियुगमें गोपी-प्रेम दिखा दिया । उनको कितना मना कियाजहर दियासिंह छोड़ दिया और कहा कि तू हमारेपर कलंक लगानेवाली है तो भी मीराँबाईने कोई परवाह नहीं की । अतः आपका हृदय यदि सच्चा है और भजन-ध्यान कर रहे हैं तो कोई धड़कन लानेकी जरूरत नहीं है ।

यदि पति सत्संगमें जानेके लिये मना करता है तो पतिके हितके लिये उससे बड़ी नम्रतासरलतासे कह दो कि मैं सत्संगकी बात नहीं छोड़ूँगी । आप जो कहोवही काम करूँगी । आपकी सेवामें कँभी त्रुटि नहीं पड़ने दूँगीपर सत्संग-भजन नहीं छोड़ूँगी । आप सत्संगमें जानेकी आज्ञा दे दो और खुद भी सत्संगमें चलो तो बड़ी अच्छी बात है,आपकी-हमारी दोनोंकी इज्जत रहेगीनहीं तो सत्संग मैं जाऊँगी । घरमें कोई शोक हो जायकोई मर जाय तो ऐसे समयमें भी सत्संगमेंमन्दिरोंमें और तीर्थोंमें जानेके लिये कोई मना नहीं है अर्थात् जरूर जाना चाहिये । शोकके समय सत्संगमें जानेसे शोक मिटता हैजलन मिटती हैशान्ति मिलती हैइसलिये जरूर जाना चाहिये ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे