।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि–
वैशाख शुक्ल नवमी, वि.सं.–२०७१, गुरुवार
श्रीसीतानवमी
सभी कर्तव्य कर्मोंका नाम यज्ञ है



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
त्रिलोकीके मध्यमें रहनेवाला है‒मनुष्य । भगवान्‌ने मनुष्यको मध्यमें निवास इसीलिये दिया है कि वह देवताओंकी भी तृप्ति कर सकता है और नरक एवं अधोलोकोंमें रहनेवालोंकी भी तृप्ति कर सकता है । सबका तर्पण होता है । द्विजातिलोग देवताओंका तर्पण करते हैंऋषियोंका तर्पण करते हैंपितरोंका तर्पण करते हैं,भूतप्राणियोका तर्पण करते हैं तथा भूतप्रेतपिशाच आदि योनियोंमें गये हुए बान्धवोंका तर्पण करते हैं । जिनके वंशमें कोई नहीं रहाउनका भी तर्पण करते हैं । इस विषयमें तर्पणकी विधि देखें । जिनके कोई जल देनेवाला नहींउनका भी तर्पण करते हैं । साँप-बिच्छू आदि जितने अधोगतिमें गये हुए जन्तु हैंजितने मध्यगतिको प्राप्त हैं और जितने ऊर्ध्वगतिमें गये हुए हैं सबको, यहाँतक कि ऊँचे-से-ऊँचे भगवान्‌को भी तर्पण करते हैं । समुद्रको तर्पण करते हैं । समुद्रमें जल कम है क्याजो जलसे उसकी तृप्ति की जाय तात्पर्य यह कि मध्यमें रहनेवाला यह मनुष्य सम्पूर्ण लोकोंके जीवोंको तृप्त करता है । इस प्रकार सबको तृप्त करनेका अधिकार भगवान्‌ने मनुष्यको दिया है । वह त्रिलोकीके जीवोंको ही नहींभगवान्‌को भी तृप्त करता है । भगवान्‌की भी भूख-प्यास मिटानेवाला यदि कोई है तो वह मनुष्य ही है । भगवान् नवें अध्यायके ३४वें श्लोकमें कहते हैं‒
मन्मना भव मद्धक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।

मुझमें मन लगामेरा ही भजन करमेरा पूजन कर और मुझे ही नमस्कार कर ।’ यहाँ यह प्रश्न होता है भगवान्‌को भी भूख लगती है क्या ? ‘हाँ’ ‘क्यों उनमें भी कोई कमी है ? ‘हाँ’विनोदकी-सी बात है । जीव जो अधोगतिमें जा रहे हैंयही भगवान्‌में कमी है । सारा संसार मिलकर भगवान्‌का स्वरूप है । अतः जो अधोगतिमें जाते हैंउतना अंग भगवान्‌का ही तो अधोगतिमें जाता है । यही भगवान्‌की भूख है । भगवान् कहते हैं‒‘तू अपना सब कुछ मेरे अर्पण कर दे तो तेरा कल्याण हो जाय और मेरा काम बन जाय ।’ इस प्रकार यह सिद्ध हुआ कि भगवान्‌की तृप्ति भी मनुष्य कर सकता है । जीव-जन्तुओंकी तृप्ति तो वह करता ही है । भगवान् तो यहाँतक कहते हैं कि भक्त मुझे बेच दे तो मैं बिक जाता हूँ ।’ मैं तो हूँ भगतनको दास, भगत मेरे मुकुटमणि’‒ऐसी दशामें बताइये कि भक्त भगवान्‌के इष्ट हैं कि नहीं अर्जुनको भी भगवान् अठारहवें अध्यायके ६४वें श्लोकमें कहते हैं‒इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् ।’ तू मेरा इष्ट है...... ।’ जीव भगवान्‌को इष्ट मानता है । भगवान् कहते हैं‒‘तू मेरा इष्ट है ।’ जो भगवान्‌को अपना मन सौंप देता हैउसे भगवान् अपना इष्ट मान लेते हैंउसका आज्ञापालन करते हैं । रामावतारमें भगवान् कहते हैं‒‘मैं सीताका त्याग कर सकता हूँसमुद्रमें कूद सकता हूँ अग्निमें प्रवेश कर सकता हूँपरंतु पिताकी आज्ञा भंग करनेकी मुझमें शक्ति नहीं ।’

  (शेष आगेके ब्लॉगमें)    
‒‘जीवनोपयोगी कल्याण-मार्ग’ पुस्तकसे