।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशीवि.सं.२०७१बुधवार
ममताका त्याग



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
देखो ! आवश्यकता और कामना दो चीज हैं । आवश्यकता पूरी होनेवाली होती हैपर कामना कभी पूरी नहीं होती । कन्यादान करना आवश्यक हैपर उसके लिये चिन्ता करना आवश्यक नहीं है । कन्याको जहाँ जाना है,वहाँका प्रबन्ध अपने-आप बैठेगा । आपको उद्योग करना है,चिन्ता नहीं करनी है । कर्म करनेमें आपका अधिकार है,फलमें अधिकार नहीं है‒‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ (गीता २ । ४७) । कन्यादानके लिये उद्योग करना आपका काम है। कन्यादान हो ही जाय‒यह आपके हाथकी बात नहीं है ।

जैसेभूख लगी तो यह पेटमें अन्नकी ‘आवश्यकता’ है और उसमें स्वाद चाहना कि अमुक भोजन मिले‒यह‘कामना’ है । आवश्यकता पूरी होती हैपर कामना आजतक किसीकी पूरी नहीं हुई । किसीके भी जीवनमें ऐसा नहीं हुआ कि सब कामनाएँ पूरी हो गयी हों । परन्तु आवश्यकताका विधान है कि वह पूरी होती है । इस तरह एक आवश्यकता होती है और एक कामना होती है । इनको आप ध्यानसे सुनो और धारण करो । वर्षोंतक मेरेको यह बात समझमें नहीं आयी । व्याख्यान देता था और दिया भी वर्षोंतकपर आवश्यकता और कामना दो हैं‒यह बात मेरेको बहुत देरीसे मिली । मेरेको ऐसी बातें बहुत कठिनतासे मिली हैं । इनके मर्मको समझनेमें मेरेको जोर पड़ा है और समय लगा है । यह आपको इसलिये कहा है कि आप इस बातका कुछ आदर करो । इसमें कोई आत्मश्लाघा नहींकोई महिमा नहींकोई विशेषता नहींनहीं तो पहले ही जान लेता । पर नहीं आयी अक्लमें ! ऐसे कई झंझट थेजो गीतासे खुले हैं । परन्तु आप जानना चाहो तो बहुत सुगमतासे जान सकते हो । बहुत सरलसीधी-सादी बातें हैं ।

आवश्यकता और कामना क्या है मूलमें आवश्यकता तो है परमात्माकी और कामना है संसारकी । यह मूल बात है । हम सदा जीते रहेंहम जानकार बनेंहम सदा सुखी रहें--यह आवश्यकता हैक्योंकि आपकी यह चाहना वास्तवमें सत्-चित्-आनन्दघन परमात्माकी है । परन्तु संसारकी जितनी आवश्यकता मानते होजितनी चाहना करते होवह सब-की-सब कामना है । ये दो भेद मेरेको मिले तो बड़ी प्रसन्नता हुई मनमें कि आज तो एक काँटा निकल गया भीतरसे ! आवश्यकता और चीज हैकामना और चीज है । अँग्रेजीमें हमने want और desire‒ये दो शब्द सुने हैं । मैंने अच्छे पढ़े-लिखोंसे पूछा कि इन दो शब्दोंमें क्या भेद हैपर वे ठीक तरहसे बता नहीं सके । जैसे मैं कहता हूँ कि आवश्यकता केवल परमात्माकी है और इच्छा केवल संसारकी है । पर इतना साफ नहीं बताया अँग्रेजी पढ़े-लिखोंने । आवश्यकता पूरी होनेवाली होती हैवह मिटनेवाली हो ही नहीं सकती । परमात्मतत्त्वकी जो आवश्यकता है और हमारी जो कमी हैवह पूरी हुए बिना कभी मिट नहीं सकती और कामना कभी पूरी नहीं हो सकती‒यह नियम है । नियमका भंग होता हो तो बताओ ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे