।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशीवि.सं.२०७१गुरुवार
व्रत-पूर्णिमा
ममताका त्याग



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒रोटी-कपड़ा लोगोंकी आवश्यकता हैपरन्तु यह बहुत-से लोगोंको सुलभ नहीं है ?

स्वामीजी‒भूखा तो लखपति और करोड़पतिको भी रहना पड़ सकता है । वैद्यडॉक्टर मना कर दें तो करोड़ों रुपये पासमें होनेपर भी रोटी नहीं खा सकते । अतः रोटी-कपड़ा नहीं मिलता तो वहाँ आवश्यकता नहीं है । आवश्यकतावाली चीज तो मिलेगी ही । साफ कहा है‒‘यदस्मदीयं न हि तत्परेषाम्’ अर्थात् जो चीज हमें मिलनेवाली हैवह दूसरोंको नहीं मिल सकती । जो हमारी चीज हैवह हमारेसे अलग कैसे रहेगी उसको मिलना पड़ेगा । कोई भूखा मरनेवाला होउसको भूखा ही मरना पड़ेगा । यह आवश्यक नहीं है कि अन्न-जल ही मिले । यह तो मैंने संसारकी रीतिमें दो चीज समझनेके लिये बतायी है कि भूख-प्यासकी आवश्यकता है और स्वादकी इच्छा है । वास्तवमें आवश्यकता है परमात्माकी और इच्छा है संसारकी । संसारकी इच्छा किसी भी तरहकी होवह सब कामना ही हैजो कभी पूरी होगी ही नहीं । परमात्माकी आवश्यकता कभी मिटेगी नहींआप जानें चाहे न जानेंमानें चाहे न मानें । आप नास्तिक हो जायँ तो भी भीतरसे परमात्माकी इच्छा नहीं मिटेगी । कारण कि जो ईश्वरकोपरमात्माको बिलकुल नहीं मानतेवे भी हरदम रहना चाहते हैंज्ञान चाहते हैं,सुख-शान्ति चाहते हैं । उनकी यह इच्छा सच्चिदानन्दघन परमात्माकी है । रहना (जीना) चाहते हैं‒यह ‘सत्‌’ की इच्छा हुई । ज्ञान चाहते हैं‒यह ‘चित्’ की इच्छा हुई । सुख चाहते हैं‒यह ‘आनन्द’ की इच्छा हुई । जो ईश्वरका खण्डन करता हैदुनियासे ईश्वरका नाम उठा देना चाहता है, ऐसे नास्तिक-से-नास्तिक आदमीके भीतर भी ईश्वर-प्राप्तिकी इच्छा रहती है । क्या वह जीना नहीं चाहता क्या वह ज्ञान नहीं चाहता क्या वह सुख नहीं चाहता चाहता है तो सच्चिदानन्द परमात्माकी इच्छा है । इस चाहको कोई मिटा नहीं सकताक्योंकि यह हमारी असली चाह है असली जिज्ञासा हैअसली भूख है । यह कभी मिटनेवाली नहीं है,प्रत्युत पूरी होनेवाली ही है । संसारकी इच्छा कभी किसीकी पूरी नहीं हुईहोगी नहींहो सकती नहीं । आपने भी देख लिया कि जीवनमें कभी इच्छा पूरी नहीं हुई । अब उसको छोड़नेमें क्या बाधा है ?

श्रोता‒हम इतना मान लें कि हमने सब छोड़ दिया तो क्या इतना माननेसे परमात्माकी प्रासि हो जायगी ?

         स्वामीजी‒नहीं होगी । यह कोई तमाशा नहीं है । भीतरसे इच्छा छोड़ोगेतब होगी । मैंने इच्छा छोड़ दी‒ऐसा कहनेसे क्या हो जायगा केवल कहनेसे नहीं होगा । केवल ऊपरसे मान लेनेसे नहीं होगा । भीतरसे कोई इच्छा नहीं हो । जीनेकी भी इच्छा न हो । अभी मर जायें तो कोई चिन्ता नहीं । इच्छा छोड़नेसे आप मरोगे नहीं और चाहनेपर भी बचोगे नहीं । मरना तो पड़ेगा हीनहीं चाहनेपर भी और चाहना छोड़नेपर भी‒यह पक्की बात कहता हूँ ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे