।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ पूर्णिमावि.सं.२०७१शुक्रवार
पूर्णिमा
ममताका त्याग



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
आप विचार करो कि क्या अपनी चाहनासे हम जी रहे हैं । चाहनेमात्रसे कोई जी नहीं सकता । जीनेके उपायके लिये मैं मना नहीं करता । रोटी खाओदवाई लोसंयमसे रहो‒यह बात मैं कहता हूँ । परन्तु हम जीते रहें‒यह हमारे हाथकी बात नहीं है । इसमें आपको क्या बाधा लगती है पूछो ।

आप सोचते हैं तो उलटा सोचते हैं कि यह चुप कैसे हो जाय ऐसा प्रश्न पूछें कि यह बोल नहीं सके । यह नहीं सोचते कि बातको काममें कैसे लायें जैसे सरकारी कानूनके विषयमें सोचते हैं कि इस कानूनसे कैसे बचें ? कैसे झूठ-कपट करें ? कैसे चकमा दें ? यही बर्ताव आप दूसरोंसे करते हैं । ऐसा करना ठीक नहीं है । आप ऐसा सोचो कि यह ममता कैसे मिटे ? यह कामना कैसे मिटे इसके लिये सोचना होता हैचेष्टा नहीं होती । वस्तुको ज्यों-की-त्यों रहने दो,एक कौड़ी भी खर्च मत करोपरन्तु ‘यह मेरी नहीं है’ इतना मान लो । आस्तिकके लिये बहुत सरल उपाय है कि ‘यह सब भगवान्‌की है’  सच्ची बात है । आस्तिक आदमी सब वस्तुओंको भगवान्‌की मानते ही हैं । अब बोलोममता छूटेगी कि नहीं हमारी है ही नहींठाकुरजीकी है । अब वस्तु चली जाय तो ठाकुरजीकी वस्तु चली गयी । रक्षा करनाठीक तरहसे रखना हमारा काम हैक्योंकि हम ठाकुरजीके हैं तो हम ठाकुरजीकी चीजको निरर्थक नष्ट कैसे होने देंगे !

ठाकुरजीके विधानके अनुसार खर्च करेंगेक्योंकि ठाकुरजीकी चीज है । कितना सुगम उपाय है ! इस बातको भीतरसे पक्का मान लो । अब बेटा मर जाय तो हम चिन्ता क्यों करें ? भगवान्‌का बेटा मरा । आप बिलकुल गिनाओ कि हमारे इतने बेटे हैं । गिनानेमें क्या हर्ज हुआ । आप केवल मेरापन छोड़ दो । उनका पालन-पोषण करोरक्षा करो । अपनी जिम्मेवारीका पालन करो । भगवान्‌की दी हुई ड्‌यूटी है । गाड़ीमें बैठनेपर आप कहते हैं कि यह हमारा डिब्बा है,पर गाड़ीसे उतरनेके बाद आप कभी चिट्ठी देकर पूछते हो कि हमारा डिब्बा कैसे है अतः व्यवहार करनेमें कोई बाधा नहीं लगती । व्यवहार सुचारुरूपसे करो । जैसा अभी करते होउससे भी सुचारुरूपसे करो । हमारी चीजकी परवाह नहींपर अब तो प्रभुकी चीज है ! उसकी अच्छी तरहसे रक्षा करो ।

मैं आपका दुःख मिटानेके लिये कहता हूँ । चीज मिटानेनष्ट करनेके लिये नहीं कहता हूँ । चीज छोड़कर साधु हो जाइये‒यह नहीं कहता हूँ । दुःखसन्तापअभाव,व्याकुलताहलचल मिटानेके लिये कहता हूँ । वही घर है वही स्त्री हैवही परिवार हैवे ही रुपये हैं और वैसे ही आप होकुछ फर्क नहीं पड़ेगाकेवल आपकी चिन्ता मिट जायगी ! परन्तु ममताकामना रखोगे तो यह चिन्ताहलचलदुःख,सन्ताप कभी मिटनेका है ही नहीं । ममताकामनाके रहते चिन्ताहलचल न हो‒यह असम्भव बात है । मनमें इच्छा रखे कि ऐसा हो और ऐसा न हो तो हलचल होगी ही ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे