।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
आषाढ़ कृष्ण द्वितीयावि.सं.२०७१रविवार
आहार-शुद्धि



मनुष्योंकी जो स्वाभाविक वृत्तिस्थितिभाव बनता है उसके बननेमें कई कारण होते हैं । उनमें आहार भी एक कारण है । कहावत भी है कि ‘जैसा खाये अन्न वैसा बने मन’अतः आहार जितना सात्त्विक होता हैमनुष्यकी वृत्ति उतनी ही सात्त्विक बनती है अर्थात् सात्त्विक वृत्तिके बननेमें सात्त्विक आहारसे सहायता मिलती है ।

गीतामें आहारका स्वतन्त्ररूपसे वर्णन नहीं हुआ है,प्रत्युत आहारी- (व्यक्ति- )का वर्णन होनेसे आहारका वर्णन हुआ हैजैसे‒सात्त्विक व्यक्तिको प्रिय होनेसे सात्त्विक आहारकाराजस व्यक्तिको प्रिय होनेसे राजस आहारका और तामस व्यक्तिको प्रिय होनेसे तामस आहारका वर्णन हुआ है (१७ । ८‒१०) । अतः गीतामें जहाँ-जहाँ आहारकी बात आयी हैवहाँ-वहाँ भगवान्‌ने आहारीका ही वर्णन किया हैजैसे‒‘नियताहाराः’ (४ । ३०) पदमें नियमित आहार करनेवालेका‘नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्त-मनश्नतः ।’(६ । १६) पदोंमें अधिक खानेवाले और बिलकुल न खानेवालेका‘युक्ताहारविहारस्य’ (६ । १७) पदमें नियमित खानेवालेका‘यदश्नासि’ (९ । २७) पदमें भोजनके पदार्थको भगवान्‌के अर्पण करनेवालेका और ‘लध्वाशी’ (१८ । ५२)पदमें अल्प भोजन करनेवालेका वर्णन किया गया है ।

गीतामें जो तीनों (सत्त्वरज और तम) गुणोंका वर्णन हुआ हैउनमें भी तारतम्य रहता है । सात्त्विक मनुष्यमें सत्त्वगुणकी प्रधानता होनेपर भी साथमें राजस-तामस भाव रहते हैं । राजस मनुष्यमें रजोगुणकी प्रधानता होनेपर भी साथमें सात्त्विक-तामस भाव रहते हैं । तामस मनुष्यमें तमोगुणकी प्रधानता होनेपर भी साथमें सात्त्विक-राजस भाव रहते हैं । इसका कारण यह है कि सम्पूर्ण सृष्टि त्रिगुणात्मक है (१८ । ४०) । दो गुणोंको दबाकर एक गुण प्रधान होता है (१४ । १०) । अतः सात्त्विक मनुष्यको सात्त्विक पदार्थ स्वाभाविक प्रिय लगनेपर भी तीनों गुणोंका मिश्रण रहनेसे अथवा पहले राजस-तामस पदार्थोंके सेवनके अभ्याससे अथवा शरीरमें किसी पदार्थकी कमी होनेसे अथवा शरीर बीमार हो जानेसे कभी-कभी राजस-तामस भोजनकी इच्छा हो जाती है । जैसेखूब नमक या नमकीन पदार्थ पानेकी मनमें आ जाती है अथवा अधपका साग आदि पदार्थ पानेकी मनमें आ जाती है ।

राजस मनुष्यको राजस पदार्थ स्वाभाविक प्रिय लगनेपर भी तीनों गुणोंका मिश्रण रहनेसे अथवा पहले सात्विक-तामस पदार्थोंके सेवनके अभ्याससे अथवा अन्य किसी कारणसे कभी-कभी सात्विक-तामस पदार्थोंकी इच्छा हो जाती है । जैसेपहले दूधकाजूपिस्ताबादाम आदिका सेवन किया हैतो बीमारीके कारण शरीर कमजोर होनेपर बल बढ़ानेके लिये उन सात्त्विक पदार्थोंकी इच्छा हो जाती है । ऐसे ही कभी-कभी लहसुनप्याज आदि तामस पदार्थोंकी भी इच्छा हो जाती है ।

तामस मनुष्यको तामस पदार्थ स्वाभाविक प्रिय लगनेपर भी शरीरमें कमजोरी आ जाने आदि कारणोंसे दूध,घी आदि सात्त्विक तथा खट्टेनमकीन आदि राजस पदार्थोंकी इच्छा हो जाती है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘आहार-शुद्धि’ पुस्तकसे