।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
आषाढ़ कृष्ण पंचमीवि.सं.२०७१मंगलवार
आहार-शुद्धि



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
 राजस भोजन न्याययुक्त और सच्ची कमाईका होनेपर भी तत्काल तो भोजनका ही असर होगा अर्थात् पेटमें जलन आदि होंगे । कारण कि भोज्य पदार्थोंका शरीरके साथ ज्यादा सम्बन्ध होता है । परन्तु भोजन सच्ची कमाईका होनेसे परिणाममें वृत्तियाँ अच्छी बनेंगी और राजसी वृत्तियाँ ज्यादा देर नहीं ठहरेंगी । वृत्तियोंमें शोकचिन्ता आदिकी तीव्रता नहीं रहेगीशान्ति रहेगी ।

तामस भोजन सच्ची कमाईका होनेपर भी तामसी वृत्तियों तो बनेंगी ही । हाँ, सच्ची कमाईका होनेसे तामसी वृत्तियोंका स्थायित्व नहीं रहेगाकभी-कभी सात्त्विक वृत्तियों भी आ जायँगी ।

सात्त्विक मनुष्यमें विवेक जाग्रत् रहता हैअतः वह पहले भोजनके परिणामको देखता है अर्थात् उसकी दृष्टि पहले परिणामकी तरफ ही जाती है । इसलिये सात्त्विक आहारमें पहले फल- (परिणाम- ) का और पीछे भोजनके पदार्थोंका वर्णन हुआ है (१७ । ८) । राजस मनुष्यमें राग रहता हैभोज्य पदार्थोंकी आसक्ति रहती हैअतः उसकी दृष्टि पहले भोजनके पदार्थोंकी तरफ ही जाती है । इसलिये राजस आहारमें पहले भोज्य पदार्थोंका और पीछे फल- (परिणाम- )का वर्णन हुआ है (१७ । ९) । तामस मनुष्यमें मोह-मूढ़ता रहती हैअतः वह मोहपूर्वक ही भोजन करता है । इसलिये तामस आहारमें केवल तामस पदार्थोंका ही वर्णन आया हैफल- (परिणाम- )का वर्णन आया ही नहीं (१७ । १०) ।

किसी भी वर्णआश्रमसम्प्रदायका मनुष्य क्यों न हो,अगर वह पारमार्थिक मार्गमें लगेगासाधन करेगा तो उसकी रुचि (प्रियता) स्वाभाविक ही सात्त्विक आहारमें होगी,राजस-तामस आहारमें नहीं । सात्त्विक आहार करनेसे वृत्तियाँ सात्त्विक बनती हैं और सात्त्विक वृत्तियोंसे सात्त्विक आहारमें प्रियता होती है ।

कर्मयोगीमें निष्कामभावकीज्ञानयोगीमें विवेकपूर्वक त्यागकी और भक्तियोगीमें भगवद्भावकी मुख्यता रहती है ।उनके सामने भोजनके पदार्थ आनेपर भी उन पदार्थोंमें उनका खिंचावप्रियता पैदा नहीं होती । जैसेकर्मयोगीके सामने भोजन आ जाय तो उसमें सुख एवं भोग-बुद्धि न रहनेसे वह रागपूर्वक भोजन नहीं करताअतः भोजनमें सात्त्विकताकी कमी रहनेपर भी निष्कामभाव होनेसे भोजनमें सांगोपांग सात्त्विकता आ जाती है । ज्ञानयोगी सम्पूर्ण पदार्थोंसे विवेकपूर्वक सम्बन्ध-विच्छेद करता हैअतः भोज्य पदार्थोंसे सम्बन्ध न रहनेके कारण वह जो भोजन करता हैवह सात्त्विक हो जाता है । भक्तियोगी भोज्य पदार्थोंको पहले भगवान्‌के अर्पण करके फिर उनको प्रसादरूपसे ग्रहण करता हैअतः वह भोजन सात्त्विक हो जाता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘आहार-शुद्धि’ पुस्तकसे