।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
ज्येष्ठ शुक्ल पंचमीवि.सं.२०७१सोमवार
सत्संगकी आवश्यकता



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
अतः सती स्त्रियोंसे पृथ्वीकीदुनियाकी रक्षा होती है‒‘एक सती और जगत् सारा, एक चन्द्रमा नौ लख तारा ।’इतना बल आपमें है ! इसलिये आप धर्मका अच्छी तरहसे पालन करें । आप धर्मकी रक्षा करो तो धर्म लोकमें,परलोकमेंसब जगह आपकी रक्षा करेगा‒‘धर्मो रक्षति रक्षितः ।’ कई बहनोंको पता नहीं है कि धर्म क्या कहता है ? शास्त्र क्या कहता है तो वाल्मीकिरामायणतुलसीकृत रामायण आदि ग्रन्थ पढ़ो । परन्तु ग्रन्थोंको पढ़नेमें हमारी बुद्धिकी प्रधानता रहती हैजिससे पूरा अर्थ खुलता नहीं । पुस्तकोंमें अच्छी-अच्छी बातें पढ़नेपर भी अपनी बुद्धिकी मुख्यता रहनेसे हम उन बातोंको इतना नहीं समझ पाते,जितना हम सत्संगके द्वारा सुनकर समझ पाते हैं । इसलिये भाइयो ! बहनो ! सत्संग करो । आजकल अच्छी बातें मिलती नहीं हैं । बहुत कम जगह मिलती हैं । अगर मिल जायँ तो विशेषतासे लाभ लेना चाहिये । करोड़ों काम बिगड़ते हों तो भी यह मौका चूकने नहीं देना चाहिये‒‘कोटिं त्यक्त्वा हरिं स्मरेत् ।’ खेत सूख जाय तो फिर वर्षासे क्या होगा ‒
का बरषा  सब  कृषी  सुखानें ।
समय चुकें पुनि का पछितानें ॥
                                                            (मानस १ । २६१ । २)

इसलिये मौका चूकने मत दो और खूब उत्साहपूर्वक सत्संगभजनध्यानमें लग जाओ । बड़ोंकी सेवा करो । उनकी आज्ञामें रहो । सत्संगके लिये उनके चरणोंमें गिर करकेरो करके आज्ञा माँग लो कि मेरेको यह छुट्टी दो ! आप जो कहोवही मैं करूँगीपरन्तु यह एक छुट्टी चाहती हूँ । इतना हृदयका कड़ा कौन होगाजो सेवा करनेवालेकी एक इतनी-सी बात भी नहीं मानेगा !

लखनऊके एक कायस्थ घरकी बात है । लड़की वैष्णवोंके घरकी और शुद्ध आचरणोवाली थीपर पतिका खाना-पीना सब खराब था । महाराज ! सुनकर आश्चर्य आये,ऐसी बात मैंने सुनी शरणानन्दजी महाराजसे ! वह लड़की आज्ञा-पालन करतीमांस बनाकर देती । आप भोजन करती तो स्नान करके दूसरे वस्त्र पहनती और अपनी रोटी अलग बनाकर खाया करती । कितनी तकलीफ होतीबताओ ! ऐसा गन्दा काम भी कर देना और अपनी पवित्रता भी पूरी रखना ! एक बार पति बीमार हो गया । उसने खूब तत्परतासे रातों जगकर पतिकी सेवा की । पति ठीक हो गया तो उसने कहा कि तुम मेरेसे एक बात माँग लो । उसने कहा कि आप सिगरेट छोड़ दो । इस बातका पतिपर इतना असर पड़ा कि उसने मांस-मदिरा सब छोड़ दिया । क्योंकि इतनी सेवा करके भी अन्तमें उसने एक छोटी-सी बात सिगरेट छोड़नेकी माँगी ! अतः माताओ ! बहनो ! अपनी माँग बहुत कम रखनी है और सेवा करनी है । परन्तु पतिके कहनेसे सत्संग-भजनका त्याग नहीं करना हैक्योंकि इस बातको माननेसे उसको नरक होगा । अपना ऐसा कोई भी आचरण नहीं होना चाहियेजिससे पतिको नरक हो जाय । अतः पतिमाता-पिता आदिको पापसे बचानेके लिये सत्संग करो । अपनी मर्यादा मत छोड़ो । अपना जीवन शुद्धनिर्मल और मर्यादित होफिर कोई डर नहीं ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगका प्रसाद’ पुस्तकसे