।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
आषाढ़ कृष्ण अष्टमीवि.सं.२०७१शुक्रवार
आहार-शुद्धि



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
 माताएँ-बहनें जब रजस्वला हो जाती हैंतब उनको हम छूते भी नहींदूरसे ही नमस्कार करते हैंक्योंकि उनको छूनेसे अपवित्रता आती है । रजस्वला स्त्रीकी छाया पड़नेसे साँप अन्धे हो जाते हैं और पापड़ काले पड़ जाते हैं । जलाशयको छूनेसे उसमें जीव-जन्तु पैदा हो जाते हैं । अन्न,वस्त्र आदिको छूनेसे वे अपवित्र हो जाते हैं । कारण कि रजस्वला स्त्रीके शरीरसे जहर निकलता हैजिसके निकल जानेपर वह शुद्ध हो जाती है । इस प्रकार जिस रजको अपवित्र मानते हैंउसी रजसे अण्डा बनता है । अतः अण्डा खानेवालेमें वह अपवित्रता आयेगी ही ।

जो व्यक्ति जीवरहित अण्डा खाने लग जायगावह फिर जीववाला अण्डा भी खाने लगेगा । इसके सिवाय जीवरहित अण्डोंमें जीववाले अण्डोंकी मिलावट न हो‒इसका भी क्या पता अतः प्रत्येक दृष्टिसे अण्डा खाना निषिद्ध हैपाप है ।

प्रश्न‒जड़ी-बूटियाँ उखाड़नेमें भी हिंसा होती है । अतः उनसे बनी हुई दवाइयाँ लेनी चाहिये या नहीं ?

उत्तर‒चतुर्थाश्रमी संन्यासीत्यागी अगर जड़ी-बूटियोंसे बनी शुद्ध दवाई भी न लें तो अच्छा हैक्योंकि उनमें त्याग ही मुख्य है । ऐसे तो त्याग सबके लिये ही अच्छा हैपर गृहस्थ आदि यदि जड़ी-बूटियोंसे बनी दवाइयों लें तो उनके लिये उतना दोष नहीं है । जैसेजो खेती आदि करते हैं,उनके द्वारा अनेक जीव-जन्तुओंकी हिंसा होती हैपर उस हिंसाका उतना दोष नहीं लगताक्योंकि खेतीसे उत्पन्न होनेवाले अन्न आदिके द्वारा प्राणियोंका जीवन चलता है । ऐसे ही जो लोग जड़ी-बूटियाँ उखाड़ते हैंउनके द्वारा हिंसा तो होती हैपर उसका उतना दोष नहीं लगताक्योंकि उस औषधिके द्वारा लोगोंको नीरोगता प्राप्त होती है ।

पद्मपुराणमें आता है कि मनुष्य किसी भी जलाशयका पानी पीये तो उस जलाशयमेंसे थोड़ी-सी मिट्टी निकालकर किनारेपर डाल दे । इसका तात्पर्य यह है कि वह जलाशय किसी दूसरे व्यक्तिने खुदवाया है । अतः उसमेंसे मिट्टी निकालनेसे जलाशयके खोदनेमें हमारा भी हिस्सा हो जायगाजिससे उस जलाशयका पानी पीने (पराया हक लेने) का दोष हमें नहीं लगेगा । ऐसे ही जो जड़ी-बूटियाँ औषध बनानेके काममें आती होंउनको जल आदिसे पुष्ट करना चाहियेउनकी विशेष रक्षा करनी चाहियेउनको निरर्थक नहीं उखाड़ना चाहिये ।

प्रश्न‒रोग किस प्रकार पैदा होते हैं ?

उत्तर‒रोग दो प्रकारसे पैदा होते हैं‒प्रारब्धसे और कुपथ्यसे । पुराने पापोंका फल भुगतानेके लिये शरीरमें जो रोग पैदा हो जाते हैंवे ‘प्रारब्धजन्य’ हैं । जो रोग निषिद्ध खान-पानसेआहार-विहारसे पैदा होते हैंवे ‘कुपथ्यजन्य’ हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘आहार-शुद्धि’ पुस्तकसे