।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
आषाढ़ कृष्ण नवमीवि.सं.२०७१शनिवार
आहार-शुद्धि



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
 प्रश्न‒रोगकी हम कैसे पहचान करें कि यह रोग तो प्रारब्धजन्य है और यह रोग कुपथ्यजन्य है ?

उत्तर‒पथ्यका सेवन करनेसेसंयमपूर्वक रहनेसे और दवाई लेनेसे भी जो रोग मिटता नहींउसको ‘प्रारब्धजन्य’जानना चाहिये । दवाई और पथ्यका सेवन करनेसे जो रोग मिट जाता है उसको ‘कुपथ्यजन्य’ जानना चाहिये ।

कुपथ्यजन्य रोग चार प्रकारके होते हैं‒साध्यकृच्छ्र-साध्ययाप्य और असाध्य । जो रोग दवाई लेनेसे मिट जाते हैंवे ‘साध्य’ हैं । जो रोग कई दिनतक दवाई और पथ्यका विशेषतासे सेवन करनेपर दूर होते हैंवे ‘कृच्छ्र-साध्य’ हैं । जो रोग पथ्य आदिका सेवन करते रहनेसे दबे रहते हैंजड़से नहीं मिटते वे ‘याप्य’ हैं । जो रोग दवाई आदिका सेवन करनेपर भी मिटते नहींवे ‘असाध्य’ हैं ।

प्रारब्धसे होनेवाला रोग तो असाध्य होता ही है, कुपथ्यसे होनेवाला रोग भी कभी-कभी असाध्य हो जाता है । ऐसे असाध्य रोग प्रायः दवाइयोंसे दूर नहीं होते । किसी सन्तके आशीर्वादसेमन्त्रोंके प्रबल अनुष्ठानसेभगवत्कृपासे ऐसे रोग दूर हो सकते हैं ।

प्रश्न‒कुपथ्यजन्य रोगके असाध्य होनेमें क्या कारण है?

उत्तर‒इसमें कई कारण हो सकते हैंजैसे‒(१) रोग बहुत दिनका (पुराना) हो जाय, (२) तात्कालिक रुचिके कारण रोगी कुपथ्यका सेवन कर ले, (३) दवाइयोंके बनानेमें मात्रा आदिकी कमी रह जाय, (४) जिन जड़ी-बूटियों आदिसे दवाइयों बनायी जायँ, वे पुरानी होंताजी न हों, (५) रोगीका वैद्यपर और औषधपर विश्वास न हो (६) रोगी खान-पान आदिमें संयम नहीं रखे (७) रोगी ब्रह्मचर्यका पालन नहीं करेआदि-आदि कारणोंसे कुपथ्यजन्य रोग भी जल्दी नहीं जाते ।

जो रोगी बार-बार तरह-तरहकी दवाइयाँ लेता रहता हैदवाइयोंका अधिक मात्रामें सेवन करता हैउसको दवाइयोंसे विशेष लाभ नहीं होताक्योंकि दवाइयाँ उसके लिये आहाररूप हो जाती हैं । देहातमें रहनेवाले प्रायः दवाई नहीं लेतेपर कभी वे दवाई ले लें तो उनपर दवाई बहुत जल्दी असर करती है । जो मदिराचाय आदि नशीली वस्तुओंका सेवन करते हैंउनकी आतें खराब हो जाती हैं,जिससे उनके शरीरपर दवाइयाँ असर नहीं करतीं । जो धर्मशास्त्र और आयुर्वेदशास्त्रके विरुद्ध खान-पानआहार-विहार करता हैउसका कुपथ्यजन्य रोग दवाइयोंका सेवन करनेपर भी दूर नहीं होता ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘आहार-शुद्धि’ पुस्तकसे