।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
आषाढ़ कृष्ण एकादशीवि.सं.२०७१सोमवार
योगिनी एकादशी-व्रत (सबका)
आहार-शुद्धि



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
 प्रश्न‒गलितकुष्ठप्लेग आदिसे ग्रस्त रोगियोंके सम्पर्कमें आनेसे किसीको ये रोग हो जायँ तो इसमें उसका प्रारब्ध कारण है या कुछ और ?

उत्तर‒जिनका प्रारब्ध कच्चा है अर्थात् प्रारब्धकर्मके अनुसार जिनको रोग होनेवाला हैउन्हींको ये रोग होते हैं,सबको नहीं । प्रारब्धसे होनेवाले रोगोंमें गलितकुष्ठ आदिके रोगियोंका सम्पर्क केवल निमित्त बन जाता है ।

प्रश्न‒रोगोंको मिटानेके लिये कौन-सी चिकित्सा करनी चाहिये ?

उत्तर‒चिकित्सा पाँच प्रकारकी होती है‒मानवीय,प्राकृतिकयौगिकदैवी और राक्षसी । जड़ी-बूटी आदिसे बने औषधसे जो इलाज किया जाता है वह ‘मानवीय चिकित्सा’है । अन्नजलहवाधूपमिट्टी आदिके द्वारा जो इलाज किया जाता हैवह ‘प्राकृतिक चिकित्सा’ है । व्यायाम,आसनप्राणायामसंयमब्रह्मचर्य आदिके द्वारा रोगोंको दूर करना ‘यौगिक चिकित्सा’ है । मन्त्रतन्त्र आदिसे तथा आशीर्वादके द्वारा रोगोंको दूर करना ‘दैवी चिकित्सा’ है । चीड़-फाड (आपरेशन) आदिसे जो इलाज किया जाता है वह‘राक्षसी चिकित्सा’ है । इन सबमें शरीरके लियेरोगोंको हटानेके लिये ‘यौगिक चिकित्सा’ ही श्रेष्ठ हैक्योंकि इसमें खर्चा नहीं हैपराधीनता भी नहीं है और आसनप्राणायाम,संयम आदि करनेसे शरीरमें रोग भी नहीं होते ।

प्रश्न‒व्यायामआसनप्राणायाम आदि करनेसे कौनसे रोग नहीं होते‒कुपथ्यजन्य या प्रारब्धजन्य ?

उत्तर‒आसनप्राणायामसंयमब्रह्मचर्यपालन आदिसे कुपथ्यजन्य रोग तो होते ही नहीं और प्रारब्धजन्य रोगोंमें भी उतनी तेजी नहीं रहतीउनका शरीरपर कम प्रभाव होता है । कारण कि आसनप्राणायाम आदि भी कर्म हैंअतः उनका भी फल होता है ।

प्रश्न‒व्यायाम और आसनमें क्या भेद है ?

उत्तर‒व्यायामके ही दो भेद हैं‒(१) कुश्तीका व्यायामजैसे‒दण्ड-बैठक आदि और (२) आसनोंका (यौगिक) व्यायामजैसे-शीर्षासनसर्वांगासनमत्स्यासन आदि ।

जो लोग कुश्तीका व्यायाम करते हैं उनकी मांसपेशियों मजबूतकठोर हो जाती हैं और जो लोग आसनोंका व्यायाम करते हैंउनकी मांसपेशियाँ लचकदार,नरम हो जाती हैं । दूसरी बातजो लोग कुश्तीका व्यायाम करते हैंउनका शरीर जवानीमें तो अच्छा रहता हैपर वृद्धावस्थामें व्यायाम न करनेसे उनके शरीरमेंसन्धियोंमें पीड़ा होने लगती है । परन्तु जो लोग आसनोंका व्यायाम करते हैंउनका शरीर जवानीमें तो ठीक रहता ही है, वृद्धावस्थामें अगर वे आसन न करें तो भी उनके शरीरमें पीड़ा नहीं होती* । इसके सिवाय आसनोंका व्यायाम करनेसे नाड़ियोंमें रक्तप्रवाह अच्छी तरहसे होता हैजिससे शरीर नीरोग रहता है । ध्यान आदि करनेमें भी आसनोंका व्यायाम बहुत सहायक होता है । अतः आसनोंका व्यायाम करना ही उचित मालूम देता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘आहार-शुद्धि’ पुस्तकसे
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* वृद्धावस्थामें भी आसनोंका सूक्ष्म (हलका) व्यायाम करना चाहियेइससे शरीरमें स्कूर्तिहलकापन रहेगा ।