।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
आषाढ़ कृष्ण द्वादशीवि.सं.२०७१मंगलवार
आहार-शुद्धि



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
 प्रश्न‒लोगोंका कहना है कि आसन करनेसे शरीर कृश हो जाता है क्या यह ठीक है ?

उत्तर‒हाँ ठीक हैपरन्तु आसनसे शरीर कृश होनेपर भी शरीरमें निर्बलता नहीं आती । आसन करनेसे शरीर नीरोग रहता हैशरीरमें स्कूर्ति आती हैशरीरमें हलकापन रहता है । आसन न करनेसे शरीर स्थूल हो सकता है पर स्थूल होनेसे शरीरमें भारीपन रहता है, शरीरमें शिथिलता आती है, काम करनेमें उत्साह कम होता हैचलने-फिरने आदिमें परिश्रम होता हैउठने-बैठनेमें कठिनता होती है, बिस्तरपर पड़े रहनेका मन करता है, शरीरमें रोग भी ज्यादा होते हैं । अतः शरीरकी स्थूलता इतनी श्रेष्ठ नहीं हैजितनी कृशता श्रेष्ठ है । किसीका शरीर कृश हैपर नीरोग है और किसीका शरीर स्थूल है पर रोगी हैतो दोनोंमें शरीरका कृश होना ही अच्छा है ।

प्रश्न‒आसनोंका व्यायाम करना किन लोगोंके लिये ज्यादा उपयोगी है ?

उत्तर‒जो लोग खेतीकापरिश्रमका काम करते हैं,उनका तो स्वाभाविक ही व्यायाम होता रहता है और उनको हवा भी शुद्ध मिल जाती हैअतः उनके लिये व्यायामकी जरूरत नहीं है । परन्तु जो लोग बौद्धिक काम करते हैं;दूकानआफिस आदिमें बैठे रहनेका काम करते हैंउनके लिये आसनोंका व्यायाम करना बहुत उपयोगी होता है ।

प्रश्न‒व्यायाम कितना करना चाहिये ?

उत्तर‒कुश्तीके व्यायाममें तो दण्ड-बैठक करते-करते शरीर गिर जायथक जाय तो वह व्यायाम अच्छा होता है । परन्तु आसनोंके व्यायाममें ज्यादा जोर नहीं लगाना चाहिये,प्रत्युत शरीरमें कुछ परिश्रम मालूम देनेपर आसन करना बन्द कर देना चाहिये । आसनोंका व्यायाम करते समय भी बीच-बीचमें शवासन करते रहना चाहिये ।

प्रश्न‒व्यायाम किस जगह करना चाहिये ?

उत्तर‒जहाँ शुद्ध हवा होजंगल हो वहाँ व्यायाम करनेसे विशेष लाभ होता है । कुश्तीके व्यायाममें तो अगर शुद्ध हवा न मिले तो भी काम चल सकता है पर आसनोंके व्यायाममें शुद्ध हवाका होना जरूरी है । जो लोग शहरोंमें रहते हैंवे लोग मकानकी छतपर अथवा कमरेमें हलका-सा पंखा चलाकर आसन कर सकते हैं ।

प्रश्न‒व्यायाम करनेवालोंको किस वस्तुका सेवन करना चाहिये ?

उत्तर‒कुश्तीका व्यायाम करनेवालोंको दूधघी आदिका खूब सेवन करना चाहिये । दूधघी आदि लेते हुए अगर उल्टी हो जाय तो भी उसकी परवाह नहीं करनी चाहियेपर जितना पचा सकेंउतना तो लेना ही चाहिये । परन्तु आसनोंके व्यायाममें शुद्धसात्त्विक तथा थोड़ा आहार करना चाहिये (६ । १७) ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘आहार-शुद्धि’ पुस्तकसे