।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
आषाढ़ कृष्ण चतुर्दशीवि.सं.२०७१गुरुवार
श्राद्धकी अमावस्या
आहार-शुद्धि



 (गत ब्लॉगसे आगेका)
 भोजनके पहले दोनों हाथदोनों पैर और मुख‒ये पाँचों शुद्धपवित्र जलसे धो ले । फिर पूर्व या उत्तरकी ओर मुख करके शुद्ध आसनपर बैठकर भोजनकी सब चीजोंको‘पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्या प्रयच्छति । तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ॥’ (गीता ९ । २६)‒यह श्लोक पढ़कर भगवान्‌के अर्पण कर दे । अर्पणके बाद दायें हाथमें जल लेकर ‘ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् । ब्रह्मैव तेन गन्तव्य ब्रह्मकर्मसमाधिना ॥’ (गीता ४ । २४)‒यह श्लोक पढ़कर आचमन करे और भोजनका पहला ग्रास भगवान्‌का नाम लेकर ही मुखमें डाले । प्रत्येक ग्रासको चबाते समय ‘हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ॥’इस मन्त्रको मनसे दो बार पढ़ते हुए या अपने इष्टका नाम लेते हुए ग्रासको चबाये और निगले । इस मन्त्रमें कुल सोलह नाम हैं और दो बार मन्त्र पढ़नेसे बत्तीस नाम हो जाते हैं । हमारे मुखमें भी बत्तीस ही दाँत हैं । अतः (मन्त्रके प्रत्येक नामके साथ बत्तीस बार चबानेसे वह भोजन सुपाच्य और आरोग्यदायक होता है एवं थोड़े अन्नसे ही तृप्ति हो जाती है तथा उसका रस भी अच्छा बनता है और इसके साथ ही भोजन भी भजन बन जाता है ।

भोजन करते समय ग्रास-ग्रासमें भगवन्नाम-जप करते रहनेसे अन्नदोष भी दूर हो जाता है ।

जो लोग ईर्ष्याभय और क्रोधसे युक्त हैं तथा लोभी हैंऔर रोग तथा दीनतासे पीड़ित और द्वेषयुक्त हैंवे जिस भोजनको करते हैंवह अच्छी तरह पचता नहीं अर्थात् उससे अजीर्ण हो जाता है । इसलिये मनुष्यको चाहिये कि वह भोजन करते समय मनको शान्त तथा प्रसन्न रखे । मनमें कामक्रोधलोभमोह आदि दोषोंकी वृत्तियोंको न आने दे । यदि कभी आ जायँ तो उस समय भोजन न करेक्योंकि वृत्तियोंका असर भोजनपर पड़ता है और उसीके अनुसार अन्तःकरण बनता है । ऐसा भी सुननेमें आया है कि फौजी लोग जब गायको दुहते हैंतब दुहनेसे पहले बछड़ा छोड़ते हैं और उस बछड़ेके पीछे कुत्ता छोड़ते हैं । अपने बछड़ेके पीछे कुत्तेको देखकर जब गाय गुस्सेमें आ जाती हैतब बछड़ेको लाकर बाँध देते हैं और फिर गायको दुहते हैं । वह दूध फौजियोंको पिलाते हैंजिससे वे लोग खूँखार बनते हैं ।

ऐसे ही दूधका भी असर प्राणियोंपर पड़ता है । एक बार किसीने परीक्षाके लिये कुछ घोड़ोंको भैंसका दूध और कुछ घोड़ोंको गायका दूध पिलाकर उन्हें तैयार किया । एक दिन सभी घोड़े कहीं जा रहे थे । रास्तेमें नदीका जल था । भैंसका दूध पीनेवाले घोड़े उस जलमें बैठ गये और गायका दूध पीनेवाले घोड़े उस जलको पार कर गये । इसी प्रकार बैल और भैंसेका परस्पर युद्ध कराया जाय तो भैंसा बैलको मार देगापरन्तु यदि दोनोंको गाड़ीमें जोता जाय तो भैंसा धूपमें जीभ निकाल देगाजबकि बैल धूपमें भी चलता रहेगा । कारण कि भैंसके दूधमें सात्त्विक बल नहीं होताजबकि गायके दूधमें सात्त्विक बल होता है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘आहार-शुद्धि’ पुस्तकसे