।। श्रीहरिः ।।

आजकी शुभ तिथि
आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदावि.सं.२०७१शनिवार
मुक्तिका उपाय



पुराण भारतीय संस्कृतिकी अमूल्य निधि है । पुराणोंमें मानव-जीवनको ऊँचा उठानेवाली अनेक सरल,सरससुन्दर और विचित्र-विचित्र कथाएँ भरी पड़ी हैं । उन कथाओंका तात्पर्य राग-द्वेषरहित होकर अपने कर्तव्यका पालन करने और भगवान्‌को प्राप्त करनेमें ही है ।पद्मपुराणके भूमिखण्डमें ऐसी ही एक कथा आती है ।

अमरकण्टक तीर्थमें सोमशर्मा नामके एक ब्राह्मण रहते थे । उनकी पत्नीका नाम था सुमना । वह बड़ी साध्वी और पतिव्रता थी । उनके कोई पुत्र नहीं था और धनका भी उनके पास अभाव था । पुत्र और धनका अभाव होनेके कारण सोमशर्मा बहुत दुःखी रहने लगे । एक दिन अपने पतिको अत्यन्त चिन्तित देखकर सुमनाने कहा कि ‘प्राणनाथ ! आप चिन्ताको छोड़ दीजियेक्योंकि चिन्ताके समान दूसरा कोई दुःख नहीं है । स्त्रीपुत्र और धनकी चिन्ता तो कभी करनी ही नहीं चाहिये । इस संसारमें ऋणानुबन्धसे अर्थात् किसीका ऋण चुकानेके लिये और किसीसे ऋण वसूल करनेके लिये ही जीवका जन्म होता है । मातापितास्त्रीपुत्रभाईमित्र,सेवक आदि सब लोग अपने-अपने ऋणानुबन्धसे ही इस पृथ्वीपर जन्म लेकर हमें प्राप्त होते हैं । केवल मनुष्य ही नहीं,पशु-पक्षी भी ऋणानुबन्धसे ही प्राप्त होते हैं ।’

‘संसारमें शत्रु, मित्र और उदासीन‒ऐसे तीन प्रकारके पुत्र होते हैं । शत्रु-स्वभाववाले पुत्रके दो भेद हैं । पहला,किसीने पूर्वजन्ममें दूसरेसे ऋण लियापर उसको चुकाया नहीं तो दूसरे जन्ममें ऋण देनेवाला उस ऋणीका पुत्र बनता है । दूसराकिसीने पूर्वजन्ममें दूसरेके पास अपनी धरोहर रखीपर जब धरोहर देनेका समय आयातब उसने धरोहर लौटायी नहींहड़प ली तो दूसरे जन्ममें धरोहरका स्वामी उस धरोहर हड़पनेवालेका पुत्र बनता है । ये दोनों ही प्रकारके पुत्र बचपनसे माता-पिताके साथ वैर रखते हैं और उसके साथ शत्रुकी तरह बर्ताव करते हैं । बड़े होनेपर वे माता-पिताकी सम्पत्तिको व्यर्थ ही नष्ट कर देते हैं । जब उनका विवाह हो जाता हैतब वे माता-पितासे कहते हैं कि यह घरखेत आदि सब मेरा हैतुमलोग मुझे मना करनेवाले कौन हो इस तरह वे कई प्रकारसे माता-पिताको कष्ट देते हैं । माता-पिताकी मृत्युके बाद वे उनके लिये श्राद्ध-तर्पण आदि भी नहीं करते । मित्र-स्वभाववाला पुत्र बचपनसे ही माता-पिताका हितैषी होता है । वह माता-पिताको सदा संतुष्ट रखता है और स्नेहसेमीठी वाणीसे उनको सदा प्रसन्न रखनेकी चेष्टा करता है । माता-पिताकी मृत्युके बाद वह उनके लिये श्राद्ध-तर्पणतीर्थयात्रादान आदि भी करता है । उदासीन-स्वभाववाला पुत्र सदा उदासीनभावसे रहता है । वह न कुछ देता है और न कुछ लेता है । वह न रुष्ट होता है,न संतुष्टन सुख देता हैन दुःख*   

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘कल्याण-पथ’ पुस्तकसे
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कोई व्यक्ति किसी सन्तकी खूब लगनसे सेवा करता है । अन्तसमयमें किसी कारणसे सन्तको उस सेवककी याद आ जाय तो वह उस सेवकके घरमें पुत्ररूपसे जन्म लेता है और उदासीनभावसे रहता है ।